कबिता

रितरवाज

सन्तानक लेल माय केँ व्रत अछि जितिया
 
एहि पावनि केँ पुत्र केर मंगल कामना आ दीर्घायु होबय केर लेल कैल जाएत अछि। जितिया पावनि अर्थात जिमूतबाहन कऽ व्रत आशिन कृष्ण पक्ष अष्टमी कऽ हो‌इत अछि। व्रत केनिहारि सप्तमी दिन नहाकेँ अरबा-अरबा‌ईन खा‌ई छथि। ई व्रत अ‌ईहव आ वीधव सभ सेहो करैत छथि। अपन-अपन सन्तानक दीर्घायुक लेल ई व्रत क‌एल जा‌ईछ। अष्टमी दिन निराहार रहिक ई व्रत हो‌ईत अछि। एहि मे फलहार के कोन बात एक बून्द पानियो तक कंठ तर नै जेबाक चाही। व्रत केनिहारि सब ओहि दिन कोनो नदी या पोखरि म नहाथि। ओहि दिन असगर नहि नहेबाक विधान अछि। पाँच-सात गोटेक संग मील कऽ नेहेबाक चाही। व्रत केनिहारि नेहेलाकऽ बाद झिमनिक पात पर ख‌ईर आ सरिसो कऽ तेल जितवाहन कऽ चढ़वैत छथि। अपना पुत्रक दीर्घायु आ सब मनोरथ पूरा करबाक वरदान मंगैत छथि । कथा सुनलाक बाद सब अपन-अपन घर अबैत छथि । नवमी दिन फ़ेर ओही तरहें पूजा पाठ कऽ केँ खीरा, अंकुरी, अक्षत, पान-सुपारी नवेद दऽ धूप=दीप जरा कऽ विसरजन करैत छथि । जिनका लोकनिक संतान लग मे रहैत छथि से माय पहिने संतान के जीतबाहनक प्रसादी दऽ केँ तखन अपने

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