कबिता

नैन प्यासल समुन्दर सुईख गेल,
जिनगी जिबके आश टुइट गेल !

हम कत आ कोनाक भटकली वाट,
चलैत चलैतमे डगर छुइट गेल !

बहुत समझैलो अपन   मनके हम ,
मन मनलक नै कहैत चल गेल !

उ निर्मिहि छेल की हम छी अभागी,
पता नै किया नेहक सागर लुइट गेल !

कके इजोत हमरा जिनगी उ सारा,
राईत के अंहरियामे आहा छुइप गेलो!

लेखक :-  प्रेमी रविन्द्र

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