(मौथिली लघु कथा)
डॉ. कैलाश कुमार मिश्र
राघव नेने रहथि त ताइदिनक छोटानागपुर आ अजुका झारखण्ड में चलि गेल छला। राघव केर पिता ओहि समय झारखण्ड केर एक आदिवासी बहुल प्रखंड स्तर केर गाम में नोकरी करैत छलथिन। राघव केर नामांकन एक सरकारी स्कूल में भ गेलनि। स्कूल में लड़का लड़की दुनू पढैत रहैक। पूरा छात्र केर संख्या में करीब 80 प्रतिशत आदिवासी सबहक रहैक। ओहि गाम में किछु बनिया, तेली, राजपूत, ब्राह्मण, कुरमी, लोहार, आ मुसलमान सेहो रहैक। आदिवासी में मूल रूप सं ओरांव आ मुन्डा लोकक जनसंख्या रहैक। दुनू आदिवासी अपन भाषा ओरांव आ मुंडारी बजैत छलैक। दुनू के भाषा आ वेष भिन्न। सामान्य लोक ओकर सबहक भाषा नहि बुझि पबैक। स्थानीय लोक सब एक दोसर सं या एक आदिवासी के लोक दोसर आदिवासी समुदाय केर लोक सं जे भाषा अर्थात लिंक भाषा में बात करैक तकर नाम रहैक सादरी। सादरी सब बुझैक। छोट राघव कनिकबे दिन में झुरझार सादरी बाजब सीख लेला। आई काल्हि सादरी भाषा झारखण्ड में प्रचलित लोकभाषा के स्थान ल लेने अछि। आब एकरा खोरठा भाषा कहल जाइत छैक।
राघब केर कक्षा में एक ओरांव जाति के लड़की रहैक। ओकर नाम रहैक कंचनलता मीना कुजूर। कंचनलता कारी भुजुंग, मुदा नैन नक्श सं बड़ सुन्नरि। घुरमल –घुरमल केश, कनि चिपकल मुदा ठीक-ठाक नाक, छोट-छोट चमकैत कान, मध्यम आकृति केर आंखि, सामान्य कद काठी। कंचनलता केर पिता सरकारी विभाग में ड्राईवर आ माय अस्पताल में नर्स छलथिन। ई परिवार इसाई धर्म स्वीकार क लेने रहैक। हलांकि अपन जाति आ समाज सं अद्भुत लगाव एहि परिवारक सब सदस्य में देखल जा सकैत छलैक। कंचनलता आ सब आदिवासी लड़का लड़की में एक बात बहुत नीक ई रहैक जे ओ सब वस्त्र बहुत साफ़ पहिरैक। थोड़ेकबे दिन में राघब के कंचनलता सं मित्रता भ गेलनि। कंचनलता केर आवास आ राघब केर आवास सेहो अगले बगल में छलनि।
कंचनलता राघब सँ 2 बरखक पैघ छलि मुदा पढ़ैत एकहि कक्षा में। राघब के सेहो कंचनलता जकाँ कारी भुजंग रंग, घुरमल-घुरमल केश छलनि जे दुनू के सामिप्य के कदाचित कारण छलनि। केवल एक चीज़क अन्तर - कंचनलता केर नाक कनि पसरल आ राघबक नाक ठाढ़। एकै ठाम आवास, एकै स्कूल आ कक्ष में पढ़बाक कारणे राघब आ कंचनलता केर बीच सामिप्य भेनाई कुनो अजगुत बात नहि। कंचनलता केर माता आ पिता दुनू नौकरी करैत छलथिन तांहि कंचनलता अधिक समय राघब के घर आबि राघब आ हुनकर जेठ बहिन सङ्गे खेलाइत-धुपाइत, पढ़ैत-लिखैत बितबैत छलि।
समय कहीं थामलैक अछि? राघब आ कंचन 9वीं कक्षा में प्रवेश क गेलनि। दुनू में एक दोसरक प्रति सहज आकर्षण बढ़ै लगलनि।
आकर्षण बढ़ैत अवस्था सँग स्वभाव सँ शारीरिक आ भाव सँ भोग दिस यात्रा शुरू क देलक। सादरी बोली में छोट लड़की के मैयां आ लड़का के छौआ कहल जाइत छैक। घर सँ आधा किलोमीटर केर दूरी पर एक पहाड़ी नदी रहैक। जाहि में नाममात्र पानि रहैक। ओना जखन बरखा होइक त एकाएक नदी उफान मारै लगैक। तांहि नदी में चौड़ाई बहुत रहैक। बरखा के बाद कतेक बेर नदीक उफान विनाशकारी लगैक। थोड़ेकबे काल में जखन पानि समाप्त भ जैक त फेर वैह सुखल नदी। शायद एहने नदी के जल देखि तुलसीदास अपन रचना रामचरितमानस में लिखने हेता:
छुद्र नदीं भरि चलीं तोराई।
जस थोरेहुँ धन खल इतराई।।
भूमि परत भा ढाबर पानी।
जनु जीवहि माया लपटानी।।
रबि दिनक नियमित रूप सँ राघब, कंचनलता एवं किछु आरो समवयस्क केर लोक ओहि नदी में जा स्नान करैत छलनि। कम पानि में अधिक पानि केर व्यवस्था कोना हो तकर स्थानीय खोज। से की? ई जे एक स्थान में बालु के हटा क दू टा गहीर खाधि कोइर देल जाइत छलैक। आब दुनू में पानि आबय लगैत छलैक। पहिल खाधि सँ दोसर खाधि के मध्य एक धार जकाँ बना देल जैक जाहि सँ बालु मिश्रित पानि बहि क ओतए चलि जैक। थोड़ेक काल में ओ खाधि पानि सँ भरि जाइत छलैक। ओ पानि हरियर कचोर । पीब त मीठ। स्वच्छ पानि। जे करब से करु। खाधि के बगल में बैसि निश्चिन्त सँ लोटा लए लोक स्नान करैत छल। गाम घरक अनेक आदिवासी युवक युवती ओतै एहि तरीका सँ जल संचय क स्नान करैत छ्ल आ वस्त्रादि धोबैत छ्ल। ओहि क्षेत्र केर दू चीज़ प्रमुख छैक। एक, करंजक तेल सँ बनल साबुन। करंजक फर बड्ड तित होइत छैक। ओकर तेल नीमो सँ तीत। स्थानीय लोक करंजक डारि के दतमनि के रूप में प्रयोग करैत छथि। ओहि सँ दतमनि केला सँ चित साफ़ भ जाइत छैक। आने लोक जकाँ राघब आ हुनकर परिवार के सब सदस्य करंजक दतमनि करैत छला। आदिवासी सब जंगल सँ करंज डारि काटि ओकर दतमनि बना दतमनि के पुलिया तैयार करैत अछि आ चौक चौराहा, आ घरे-घरे आबि बेचैत अछि। एकर तेलक साबुन नीम सँ सेहो नीक। स्थानीय लोक एकर साबुन बनबैत अछि आ बाजार में उपलब्ध ब्रांडेड साबुन सँ बहुत सस्ता दाम में उपलब्ध रहैत छैक। अतेक सस्ता जे कियो किन सकैत अछि। दोसर चीज़ एक स्थानीय गाछ जकर पात के जरा क ओहि छाउर सङ्गे कपडा के उसिन देला सँ केहनो मैल भेल कपडा धप-धप उज्जर भ जाइत छैक। हाँ, एहि हेतु केवल सूती वस्त्र होबक चाही। उज्जर होइक त अति उत्तम। रंगीन वस्त्र केर रंग ई पातक छाउर उड़ा दैत छैक।
कंचनलता आ अन्य आदिवासी सङ्गे रहबाक कारणे राघब सेहो दुनू चीज़क प्रयोग सिख लेने छलाह। कंचनलता राघब केर अंगा जे की उज्जर होइत छलनि अपने हाथे पातक छाउर सँग उसिन दैत छलथिन। अधिककाल धोनाई सँ सेहो राघब मुक्त भ जाइत छला।
आदिवासी समाज केर लोक निश्छल होइत छल। एखनो ओ निश्छलता ओकर चेहरा पर परिलक्षित होइत रहैत छैक। एक बात आरो जे एहि समाजक लोक के होइत छैक जे ओकर सभक निश्छलता, सहजता आ प्रकृति प्रेम के देखबैत छैक ओ ई जे आदिवासी लड़का लड़की स्नान मुक्त आकाश में करैत अछि। ककरो प्रति ककरो कुनो कुप्रबृत्ति नहि भेटि सकैत अछि। प्रेम त प्रकृति केर गहना छैक। प्रेम आदिवासी युवक आ युवती में सेहो होइत छैक आ खूब होइत छैक। होबाको चाही। मुदा प्रेम में घृणा आ दोसरक मर्यादा के हनन के भाव सर्वथा नहि रहैत छैक। कतेक आदिवासी लड़की जकर अवस्था 17-25 वर्षक रहैत छलैक से सब अपन वक्ष के केवल एक पतरका लाल गमछा सँ झपने नहाइत छलि। निर्विकार भाव, ने डर ने भय। ककरो कुदृष्टि ओकर अंग, यौवन पर कुनो दोसर भाव सँ नहि जाइत छलैक।
आदिवासी युवतीक शरीर गसल-गसल, चमकैत केश, शायद करंजक तेल केर व्यवहार आ प्रकृति सँग रहबाक कारणे गजब के झमटगर आ खूब कारी। घरों पर कुमारि कन्या सब निचा में स्कर्ट अथवा छोट सन नुआ पहिरने आ अपन सुन्दर, सुडौल वक्ष के मात्र पातर सन आधा ट्रांसपरेंट ललका गमछा सँ झपने सब काज करैत। निर्विकार भाव आ ओकर चेहराक भाव जे देखत ओकरा ओकर भाव में अद्भुत सौन्दर्य आ सौन्दर्यशास्त्री के ओहि में सकुन्तला के साक्षात् स्वरुप भेट सकैत छलैक। छोट-छोट आँखि, कारी मुदा भरल-भरल देह, दाड़िम सन गसल आ दूध जकाँ चकमक करैत दात, विकसित नितम्ब एक आदिवासी नायिका के विश्व सुन्दरी बना दैत छैक। ओ बाला मतबाला सभक मोन में बैस जाइत अछि। बाला अपन प्राकृतिक सुंदरता सँ लबालब भरल बनबाला बनि जाइत अछि। ककर मोन भला एक क्षण लेल ओहि बनबाला के अपन बाहुपाश में लेबाक नहि करतैक? लेकिन तमाम प्रक्रिया में निश्छल सौन्दर्य छैक, विकृति अथवा आन बात नहि। ओहि आनंद केर अनुभूति आ दर्शन करबाक हेतु सौन्दर्य केर ज्ञान भेनाई आ ओकर दर्शन कर आनंद लेबक कला में महारथी भेनाई परमावश्यक ।
ओहि वातावरण में राघब के खाधि खुनबा में कंचनलता बिना कहने प्रेम भाव सं मदति करैत छलथिन। फेर दुनू कपड़ा धोबैथ आ अंततः नहाईत छलनि। ओहि आनंदक बाते गजब। करंजक साबुन देखब में कहने दन लगैत छलैक। सॉफ्ट त साफे नहि। मुह में साबुनक फेनाएल पानि अगर गलती सं चलि जाईन त बुझू अनेरे स्वाद खराप। अतेक भेलाक बादो रहैक ओ बेजोड़ साबुन। शरीरक तमाम गंदगी आ गंध के निकलि बाहर फेकि दैक। नेहेबाक आ नदी कात में रहबाक आनंद राघब आ कंचनलता खूब उठबैत छला। दुनू के ओहुना आब असगर में, एकांत में रहनाइ निक लगैत छलनि। एकर मतलब इहो नहि जे सब किछु गडबड छलनि। दू विपरीत लिंग के एकउमेरिया लोक मात्र अपन सोहबत में रहै चाहैत छथि। एहने सन बात राघब आ कंचनलता में छलनि। यद्यपि दुनू परिवारक लोक एहि तरहक नव बात सं भिज्ञ नहि छलथि।
ओहि आदिवासी गाम में ओना त सब किछु निक रहैक मुदा एक चीज़ कनि ठीक नहि रहैक। ओ रहैक दुधक अभाव। लोक सब अर्थात जे राघब परिवार सन बाहरी छलथि से पाउडर केर दूध सं चाह बनबैत छलथि, पाउडर केर दूध बच्चा सबके सेहो देल जैत छलैक, आ ओहि दूध सं बड्ड जरुरी पडला पर दही सेहो बनबैत छलनि। कखनो क जखन राघब के घर में ब्राह्मण भोजन अथवा कुनो आर प्रयोजन लेल दूधक आवश्यकता होइत छलनि त राघब सेन्हा केर अगल-बगल केर आदिवासी गाम दिस दूधक व्योंत में जैत छला। आदिवासी सब लग महिस त नहि मुदा गाय रहैत छैक। मुदा कुनो गाय केर दूध आधा सं एक सेर तक होइत छैक। ओहि सं अधिक कुनो हाल में नहि। शायद चारा केर कमी के कारने ई बात हेतैक। मुदा दूध जतबे होइत छैक से बड़ सुअद्गर। दूधक पूर्ति आदिवासी समाज केर लोक जंगली फल, फूल, पात, साग, कंद, मधु, आदि सं करैत अछि। एकरा अतिरिक्त बहुत तरहक चिरई,जंगली जानवर, माछ, मुर्गा, सूअर केर मांस आदि सं करैत अछि। ताहि सबहक शरीर पुष्ट रहैत छैक। शुद्ध, पानि, बसात, प्रकृति, जंगल, पहार, झरना, नदी आदि ओहि में आरो वृद्धि केर कार्य करैत छैक। ओ सब छल- बल, झूठ, फरेब नहि जानैत अछि। बाजब आ करब में कुनो अंतर नहि बुझैत अछि।
खैर! जखन कखनो राघब गाम सब में दूध लेल जैत छला त स्कूल केर संगी सब मदति करैत छलनि। अनेक बेर कंचनलता सेहो राघब केर संग जैत छलथिन। कंचनलता के सोहबत सं राघब झुरझार ओरांव भाषा बजैत छला। आदिवासी महिला आ पुरुख राघब केर मुह सं अपन बोली सुनि खूब प्रसन्न होइत छल आ चौअनिया मुशकान सं अपन प्रसन्नता के व्यक्त करैत छल। ओहि गाम जते राघब जैत छला केर लड़का आ लड़की हुनका संगे घुमैत छल आ दूधक व्योंत करैत छल। जंगल केर अलावा ओहि क्षेत्र में गाछी सेहो रहैक। गाछी के सामान्यतया बारी शब्द सं संबोधित कैल जैत छलैक। हरेक गाछी केर नाम ओहि में बहुतायत मात्रा में उपलब्ध गाछक नाम पर रहैक। दू टा जे प्रसिद्ध गाछी रहैक तकर नाम क्रमशः अम्बा-बारी आ कटहल-बारी रहैक। सब के एहि बारीक सम्बन्ध में जानकारी छलैक। ओहि गाछी में लड़का लड़की अथवा ओकर सबहक भाषा में मैयां आ छौआ फल,साग, फुल आदि आनक बहाने प्रेम करक हेतु, आपस में बैस समय बितेबाक हेतु सेहो जाईक। तीन चारि सहेली आ तीन चारि लड़का सबहक हुन्ज कनि आगा पाछा ओहि गाछी सब दिस जैक। एकै बेर नहि, बेरा बेरी। लड़की सब कोना बुझतैक जे लड़का सब चलि गेल? एहि लेल एक गीतक मदति लेल जैत छलैक। गीतक बोल किछु ऐना रहैक:
अम्बा-बारी कटहल-बारी
चल मैयां साग तोरेक।।
अर्थ भेलैक जे हे बालिके, साग तोरबा हेतु आम आ कटहर केर गाछी में चलू। फेर की लड़की सब झट दनि बुझि जैक जे आब जएबाक अछि। कतेक नायक कतेक नायिका के इंतजार में बैसल। राघब केर हेतु जनजातीय जीवन आ परंपरा केर गाइड छलनि कंचनलता। कंचनलता सं राघब के ई ज्ञात भेलनि जे आदिवासी सब बाल-विवाह नहि करैत अछि। कुनो लडकी के विवाह 20 वर्ष सं पहिने नहि होइत छैक। एक बात आरो, आदिवासी समाज केर माता पिता प्रेम के मामला में कनि नहि बल्कि बहुत अधिक उदार होइत छथि। हुनका लड़का लडकी के आपसी प्रेम में कुनो बड्ड आपत्ति नहि होइत छनि। अगर कुनो लड़की कुनो लड़का सं प्रेम करैत अछि प्रेमाधिक्य में किछु एहनो-ओहनो भ जैत छैक तकर बादो अगर कुनो कारने दुनू के लगैत छैक जे एक संगे जीवन संभव नहि अछि त दुनू सहजता सं ओहि बन्धन सं मुक्त भ सकैत अछि। ओहि लड़की के अथवा लड़का के मिथिला समाज जकां चरित्रहिन नहि बुझल जैत छैक। ओ केहनो लड़का सं विवाह क सकैत अछि। विवाह में कुनो वाधा नहि होइत छैक। माता पिता सेहो एहि बात के सहजता सं स्वीकार क लैत छथि काश! अपना आपके विकसित, ज्ञानी, पैघ आ सर्वश्रेष्ट कहेबला मैथिल समाज एहि लघु समाज सं प्रेमक आ स्वतंत्रता केर परिभाषा सीख लित! ओहि ग्रुप में सब कियोक आदिवासी लड़का लड़की रहैक मुदा कहि नहि कथी लेल ओ सब राघब के सेहो सम्मिलित क लेलकनि। शायद राघब आ कंचनलता केर नहु-नहु विकसित होइत प्रेम के ओ सब उदार मोन स स्वीकृति प्रदान केने छल! महिना में राघब ओहि अम्बा-बारी अथवा कटहल-बारी 3-4 बेर अवश्य जैत छला। राघब जेता आ कंचनलता नहि जेती से कोना हैत?
एक दिन कंचनलता आ राघब असगर राघब के घर में बैसल रहथि। बातचीत केर क्रम में कहि ने कोना एकाएक कंचनलता उठली आ राघब के पाछा दिस जा हुनकर पीठ आ झोंट सह्लाबय लगली। राघब के ई स्पर्श बड्ड निक लगलनि। चुपचाप मोने-मोन प्रसन्न होइत अहि स्पर्श केर आनंद में मग्न रह्लनि। कंचनलता केर सब आंगुर अपन काज करैत रहल। ओहो एहि काज में आनंदक अनुभव करैत रहली। हाथ बीच-बीच में गरदनि दने राघव केर छाती दिस सेहो चलि जानि। ओहि प्रक्रिया में राघव उत्तेजना आ लज्जाक मिलन विन्दु के चरमोत्कर्ष पर पहुच सिसकारी मारनाई शुरू क देथि। अपन भाग्य पर गर्व करैत रहला राघब। आ अपना काज में मग्न भेल लागल रहलि कंचनलता। वयस यद्यपि राघब के बहुत बात कहबाक आ बहुत काज अथवा क्रिया करबाक अनुमति नहि दैत छलनि। भय आ प्रेम, नेनपन आ जुआनी एक संगे राघब के उभयवृतता केर अवस्था में डगमग-डगमग केने छलनि। जोर-जोर सं जल्दी-जल्दी साँस लेमय लगला। एक मोन होनि जे मना क देथि: “बंद करू ई सब कंचनलता! की क रहल छी?” फेर होनि: “ई अनुभूति त स्वर्गिक अछि। एकर प्राप्ति में जीवन सर्वश्रेष्ट भ सकैत अछि।” फेर एहो होनि: “अगर ककरो पता चललैक त सब चौपट्ट भ जैत! माँ आ पिताजी त काटि देताह! मना करबे में कल्याण। क दैत छी।” फेर विचार अबनि, “की सोचती कंचनलता, कतेक निष्ठुर आ मतलबी लोक छथि राघब?”यैह सब सोचैत रहला राघब आ कंचनलता अपन काज में व्यस्त रहली। हुनकर आंगुर कनि आब तेज आ बलपूर्वक होमय लगलनि। निश्चित भाग के छोडि इम्हर-उम्हर सेहो बौआय लगलनि। आंगुर सं कतौ-कतौ बिट्ठू काटि दैत छलथिन। राघब प्रेम आ प्रेममय पीड़ा के परमानन्द में पहुच जाथि। दर्द में जे प्रेमक अनुभूति छैक ओकर बखान कतौ शब्द में संभव छैक? जे करैत अछि सैह बुझैत अछि। किछु एहि तरहक भाव राघब के मोन में आबि रहल छलनि। आ प्रेमक रंग में डूबल कंचनलता अपना काज में भेर भेल लागल रहलि। उमेर में राघब सं दू बरखक अधिक भेनाई कंचनलता लेल आगि में घी के काज क रहल छलनि। बिना किछु कहने अपन आंगुरक सञ्चालन सं ओ राघब के अपन मोनक बात आ तनक बात सम्प्रेषित केने जा रहल छली आ कामख्या के हाकल योगिनी जकां राघब मन में जे चलि रहल छलनि तकरा बुझने जा रहल छली। 19 वर्षक समर्पित नायिका आ 17 बरखक कासुअल नायक के प्रेम बहुत मारक होइत छैक। के बुझे? वैह ने जे केने हो वा करैत हो! आब कंचनलता के नहु-नहु चलैत साँस जोर-जोर सं चले लगलनि। राघब केर माथा पर कंचनलता केर सांसक गर्मी झट-झट लगैत छलनि। जों-जों गर्मी बढैत गेलनि तों-तौं राघब बेचेन भेल जाथि। बैचेनी एहेन जे बड़ सुन्दर आ मनोरंजक रहैक। बेचैनी एहेन जे एक बालक के युवक बना रहल छल, बेचैनी एहेन जे एक नेनपन केर संगी के बहुत दिन सं चलैत सिनेह के देहक आ कामक सिनेह में परवर्तित भ रहल छल। मौन केर सम्प्रेषण अतेक शक्तिशाली भ सकैत छैक तकर आभास आई पहिल बेर राघब आ कंचनलता दुनू के भ रहल छलनि। आब कंचनलता आ राघब के घाम आबय लगलनि। कंचनलता केर हाथ कापय लगलनि। ठोर सूखे लगलनि। प्यास हद सं अधिक लागि गेलनि। झट दनि बिना राघब के कहने घैल सं पानि लेली आ एक लोटा पानि घटोसि लेलनि। राघब चुपे रहला।
पानि पीला बाद कंचनलता राघब सं नैन चोरबैत नहु-नहु पुछलथिन: “ठीक छी ने राघब?”
राघब अक्चकैएत बजला: “हाँ-हाँ ठीक छी। अहाँ अपन कहू?”
“हमहु ठीके छी”, कंचनलता उत्तर देलथिन।
आब कंचनलता पुनः राघब के पाछा आबि गेलीह। राघब चुप-चाप रहथि। मोन में गुदगुदी होमय लगलनि। रंग-विरंगक सपना देखय लगलनि राघब। कंचनलता फेर अपन कोमल-कोमल आंगुरक स्पर्श सं राघब केर माथा सह्लाबय लगली। राघब उत्तेजित होमय लगला। ओहने अनुभव कंचनलता के भ रहल छलनि। आंगुर सहलाबैत एकाएक ओ राघब के माथ के चुमि लेलनि। ई क्रिया बहुत तीव्रता संग भेल छल। एहि सं राघब सेहो प्रसन्न भेला। बजला किछु नहि। एक बात जरुर भेलनि जे एकर बाद कंचनलता के हिम्मत बढ़ि गेलनि। ओ फेर अपन क्रिया में लागि गेली। थोरेक काल के बाद ओ राघब के भरि पांज जकरैत राघव के मुह पर चुम्बन केर प्रहार करे लगली। लगातार कतेको बेर केलनि। राघब शांत भेल सहयोग करैत रहला। आब राघब उठि क ठाढ़ भ गेला। कंचनलता दिस मुह करैत बिना हुनकर अनुमति के बाहुपास में लैत ओहो कंचनलता के चुम्बन केनाई शुरू करेलनि। कंचनलता प्रेमावेग में अबैत राघब के एहि कार्य में सहयोग देमए लगलथिन। दुनू मस्त भ प्रेमक अपूर्व प्रक्रिया के आदान-प्रदान करैत रहलनि। दुनू एहि बीच की-की नहि केलनि? स्पर्श कत-कत नहि केलनि! लगैत छल ई दुनू जिनगी भरि लेल देह आ मोन सँ एक भ गेलथि! एकाएक दोसर घर में किछु चीज़ के खासबक अबाज़ भेलैक। राघब के भेलनि जे हुनकर माँ अथवा बहिन आबि रहल छथिन। झट दनि कंचनलता सँ अलग भेला आ दोसर घर दिश इशारा केल्थिन। कंचनलता बात के बुझि गेली। आब दुनू सामान्य व्यवहार करय लगलनि। कनिक काल में राघब ओहि घर गेला त देखैत छथि जे एक बिलाड़ि किछु खा रहल अछि। खेबाक क्रम में बिलाड़ि एक डिब्बा के नीचा खसा देने रहैक। राघब के देखिते बिलाड़ि भागि गेलैक। राघब सब किछु के ठीक करय लगला। बीचहि में हुनकर माँ सेहो आबि गेलथिन। कनिक काल बाद कंचनलता अपन घर चलि गेली।
ओहि राति राघब कंचनलता केर ख्वाब में डूबल रहलनि। डर आ प्रेमक अनुभूति में द्वन्द चलैत रहलनि। होनि, अगर घरक लोक के पता चलि गेलैक त की हेतै?
दोसर दिन स्कूल में कंचनलता सँ भेट भेलनि। ओ कनि राघब के देखैत अपन आँखि निचा क लेली। राघब सेहो किछु एहने मानशिक अवस्था में छला। किछु काल बाद स्वतः रूप सँ दुनू सहज भ गेलनि। ऐना जेना काल्हि किछु भेले नहि हो? कंचनलता राघब के कहलथिन, "राघब, हमर पितियौत बहिन के विवाह तय भ गेलैक अछि। आई रातुक भोजन अहाँ सबके हमरे घर में अछि। चची आ अहाँ के बहिन त नहि खाइत छथि हमरा सबहक बनल भोजन, मुदा अहाँ आ अहाँक पिताजी त खा लेत छी? "
राघब कहलथिन: "बाह! हाँ। पिताजी आ हम दक़ियानूसी बात सँ ऊपर छी। हम सब सबतरि आ सब किछु खाइत छी। अगर अहाँक पिताजी हमर पिताजी के भोजन लेल काहथिन त ओ अवश्य तैयार भ जेता।"
"हाँ हाँ, से त अपना सब के स्कूल सँ घर पहुँचब सँ पहिने हमर पिताजी अहाँ ओतए अहि बातक सूचना द देथिन। रातिये में ई बात भ गेल रहैक",कंचनलता राघब के कहलथिन।
कंचनलता सँ राघब के पता चललनि जे विवाह में लड़का बला लड़की बला के एक बरद, एक सुगर, एक मोन चाउर देलकैक अछि। ई बात राघब के कनि दोसरे सन आ आश्चर्यजनक लगलनि। पुछलथिन, "अहाँ त उल्टा बात कहैत छी कंचनलता? हमरा समाज में त लड़की बला दैत छैक समान आ टाका लड़का बला के।"
कंचनलता सेहो आश्चर्य व्यक्त करैत जवाब देलथिन, "केहेन बात कहैत छी! एक त लड़की अपन घर, समाज, सब नाता छोड़ि कुल के त्यागि लड़का बला लग जिनगी भरि लेल जाइत अछि, आ ऊपर सँ लड़की बला लड़का बला के पाई आ सामान सेहो देतैक? ई कोना संभव छैक? ई केहेन समाज अछि अहाँ सभक?"
कंचनलता आश्चर्य में आ आब कनि बयंग्य में बजैत छथि, "राघब, अहाँक माय त कहैत छथि जे मैथिल सब बड़ विद्वान छथि, सभ्य छथि, तेज बुद्धि के लोक छथि, सभ्यता आ संस्कार केर रक्षक छथि। इहो कहैत छथि जे सीता अहाँक मिथिला के छलि जिनकर हाथ पत्नी के रूप में ग्रहण करबा लेल के के नहि पहुचल। साक्षात् विष्णुअर्थात भगवन राम धनुष तोड़ि सीता के अपन पत्नी बनेलनि। ताहि सीता के माता पिता के आई राम अनबाक हेतु पाई आ वस्तु के व्यवस्था करय पड़ैत अछि! ऊपर सँ समाज विकसित अछि ताहि बातक दम्भ?"
राघब किछु नहि बजला। ओना मोने-मोन कंचनलता केर बात के स्वीकार केलनि। राघब के जेठ बहिन के विवाह होबक रहनि। पिता लग पैसा नहि छलनि। बहुत चिंतित रहैत छलथिन। खेत बेचबाक विचार छनि। तकर बादो किछु कर्ज केर व्यवस्था करय पड़ि सकैत छनि। “ठीके त कहैत छथि कंचनलता। अतेक शुद्ध मोनक आ उदार होइत अछि आदिवासी सब. छली आ सब कर्म सं भरल अछि अपन मैथिल समाज। अनेरे सभ्यता आ संस्कृति में पैघ होमाक दंभ भरैत रहैत अछि। आदिवासी सब के असभ्य, जंगली, अशिक्षित, अविकसित आ ने जानि की-की कहैत अछि? बेटा के विवाह में जखन निर्लज्ज भेल अपन आ बेटा केर पद, प्रतिष्ठा, शिक्षा आदि के तराजू केर एक पलड़ा में राखि निरंकुश बनिया जकां तौलैत अछि आ मोल-भाव करैत अछि ताहि काल कत जैत छैक मर्यादा? मोन त होइत अछि एहेन तमाम बरक बाप के चौबटा पर चढ़ा सबहक समाने गरदनि धर सं अलग क दी!” एहि तरहक भाव राघब के मोन में अपन समाज आ सामाजिक व्यवस्था के प्रति होइत रहलनि.
एक दिन कंचनलता आ किछु आरो आदिवासी लड़की-लड़का संगे राघब बगल केर एक गाम में घुमक हेतु गेल रहथि। एकाएक एक घर सं एक महिला के दर्द सं चिचियेबक अबाज एलेक। राघब के पैर झट दनि ठमकि गेलनि. तुरते एक पुरुख केर आवाज़ सेहो ओहिना एलैक। राघब के भेलनि, “ई की? जरुर परिवार में कुनो अनिष्ट भेल छैक।” मुदा कानब में शारीरिक पीड़ा केर भाव बुझा रहल छलैक। एकर बादो अगल-बगल केर स्त्रिगन आ पुरुख मस्त भेल हँसैत आ अपना काज में भेर। राघब के किछु नहि फुरा रहल छलनि। कंचनलता के पुछलथिन: “ई की भ रहल छैक?” कंचनलता त हंसि क बात टालि देलथिन मुदा दोसर आदिवासी बाला राघब दिस इंगित होइत कहलथिन: “राघब, एहि घर में एक महिला के प्रसव वेदना भ रहल छैक। थोड़ेक काल में बच्चा जन्म लतैक तकर निश्चित सम्भावना छैक. ओहि प्रसव पीड़ा सं ई महिला कानि रहलि छैक.” आश्चर्य व्यक्त करैत राघब बजला, “चलू, ई बात त स्पष्ट भेल। मुदा महिला संगे पुरुख कथी लेल कानि रहल अछि?” आब ओ आदिवासी बाला बात के फरछाबैत बजली, “सुनु राघब, हमरा आदिवासी समाज में एहेन परंपरा छैक जे पुरुख ई अनुभव करै जे कोना एक स्त्रीगन प्रसव के समय दर्द सं छटपटाईत छैक, कोना वेदना सहैत छैक? अगर पुरुख के ई अनुभूति शुरू में भ जैक त ओकर प्रेम दुनू – संतान आ पत्नी – सं अत्यधिक बढ़ि जेतैक। अहि परंपरा के कुआवाद या सह्प्रसविता कहि सकैत छी। एहि में प्रसव पीड़ा के समय गर्भवती महिला संगे ओकर पति के सेहो दोसर घर में बंद क देल जैत छैक। जेना-जेना पत्नी अपन घर सं कानतैक आ तहिना-तहिना पति के कनबाक छैक। अहि में अभिनय नहि यथार्थ होइत छैक। जखन बच्चा के जनम भ जैत छैक त पुरुख के घर सं बाहर निकालि देल जैत छैक।" राघब ई बात सुनि मोने-मोन हँसैत रहला। राति में सुतब काल भेलनि, “कतेक निक परंपरा छैक ओहि समाजक जकरा लोक अशिक्षित, असभ्य, जंगली, आ ने जानि कोन-कोन उपहासक बात सं तुलना करैत तुच्छ बुझैत अछि।" खैर, यैह सब सोचैत राघब सुति रहलनि।
एक दिन, रबि दिन राघब कंचनलता के घर गेला. घर खुजल रहैक आ कंचनलता आंखि मुनने सुतलि। राघब देखैत छथि जे घर में कियोक नहि अछि। कनिक काल इम्हर – उम्हर देखला बाद राघब कंचनलता लग गेला आ ओतहि बैस गेला। कंचनलता राघब केर उपस्थिति सं अनजान सुतलि रहलि। राघब के मोन भेलनि जे कंचनलता संग प्रणय कयल जाए। कनि काल में कंचनलता केर हाथ अपन हाथ में ल लेलथि। बाद में राघब केर हाथ इम्हर-उम्हर कंचनलता केर शरीर में बिचरन करे लगलनि। कंचनलता जागि गेल रहथि मुदा सुतबाक अभिनय करैत रहलि। राघब सेहो थोड़ेक कालक बाद एहि बात सं परिचित भ गेला। ओहो एहेन अनठियाब के अपन हित में देखलनि। बाद में कंचनलता आँखि खोलि राघब के दोसरे हिसाबे देखलथिन। दोसरे हिसाबे मतलब? मतलब ई जे देह सँ देह आ मोन सँ मोन के अभिसरक अभिलाषा के हिसाबे। कनि राघब ठक बकेलनि, मुदा हिम्मत करैत सम्हारि लगेलनि अपना आप के। आब ओ प्रत्यक्ष रूप सँ कंचनलता के अपन बाहुपाश में लेने छला। कारी, नकपिच्छी कंचनलता, अपना सँ 2 बरिख के पैघ कंचनलता, आदिवासी बाला कंचनलता, बनवाला कंचनलता, राघब के स्टेटस सँ अति निम्न कंचनलता, ड्राइवर केर बेटी कंचनलता में राघब के सर्वांग सुन्दरि नायिका बुझना जा रहल छलनि। करंजक तेल सँ सनल देह में आ माथ में चमेली के तेल सँ सेहो अपूर्व सुगंध आबि रहल छलनि। जखन राघब के हाथ , पैर आ किछु आरो ----सब कनि उदंडता करय लगेलनि त कंचनलता एकाएक साकांक्ष भ गेलि आ रोकैत बाजलि: "बस करु राघब! परसु सब कियोक दोसर गाम कुनो विवाह में भाग लेमयजा रहल अछि। हम बीमारी के बहाने नहि जैब। आ ओहि दिन 4-5 घण्टा अपने दुनू गोटे निर्विघ्न भय अम्बाबाड़ी अथवा कटहल बड़ी में उन्मुक्त भय समय बितायेब।"