जीवन बित गेल रे भैया,भेल ने कहियाे भाेर,
✍👤अर्जुन पर्साद गुप्ता"दर्दिला"
जीवन बित गेल रे भैया,भेल ने कहियाे भाेर,
खुशी खाेजैत,खाेजैत बहि गेल,नयनसँ कतेक नाेर ।
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विन बतासे उजरैत देखलाै,फुलल जे बाग छल,
बिन रापे दहकैत देखलाै,केहन अाे अागि छल,
विन अमावश अन्हार भऽगेल टह टह पुनमक इजाेर ।
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जिनगीक बाट बहुत छाेट लगैय,चलब कतेक दुर,
हँसी दिलमे रती नहि हमरा,हँसि लैछी मजबुर,
लाेग केना हँसि लैछै जगमे,विचार बहै हिलकाेर ।
जीवन बितगेल रे भैया,भेल ने कहियाे भाेर,
खुशी खाेजैत,खाेजैत बहिगेल,नयनसँ कतेक नाेर ।
रचना :- अर्जुन पर्साद गुप्ता"दर्दिला"
लहान-१०
मिति ;- २०७४/०१/०४/२
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छबि - सिरहा जिल्ला के आइलागली पीड़ित के अछि |
✍👤अर्जुन पर्साद गुप्ता"दर्दिला"
जीवन बित गेल रे भैया,भेल ने कहियाे भाेर,
खुशी खाेजैत,खाेजैत बहि गेल,नयनसँ कतेक नाेर ।
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विन बतासे उजरैत देखलाै,फुलल जे बाग छल,
बिन रापे दहकैत देखलाै,केहन अाे अागि छल,
विन अमावश अन्हार भऽगेल टह टह पुनमक इजाेर ।
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जिनगीक बाट बहुत छाेट लगैय,चलब कतेक दुर,
हँसी दिलमे रती नहि हमरा,हँसि लैछी मजबुर,
लाेग केना हँसि लैछै जगमे,विचार बहै हिलकाेर ।
जीवन बितगेल रे भैया,भेल ने कहियाे भाेर,
खुशी खाेजैत,खाेजैत बहिगेल,नयनसँ कतेक नाेर ।
रचना :- अर्जुन पर्साद गुप्ता"दर्दिला"
लहान-१०
मिति ;- २०७४/०१/०४/२
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कवि - अर्जुन पर्साद गुप्ता"दर्दिला" जी |
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पोस्ट - अशोक कुमार सहनी
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