कबिता


आङ्गुर पर नचा रहल य गरिबी
बहुत चीज सिखा रहल य गरिबी॥
आन्हर बनि जिवैत रहलौ सदित,
आँखि आइ,खोला रहल य गरिबी॥
दुखक पहाड़ टुटि गिरल छातीपे,
हकनि नोर कना रहल य गरिबी॥
जानि नै छी कते'क अभागल हम,
खुव नजैर लगा रहल य गरिबी॥
क्षमता सँ बेसी कनिको नै सोचु,
विद्यानन्दके बता रहल य गरिबी॥
* * *
©गजलकार:विद्यानन्द वेदर्दी
राजविराज,सप्तरी

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