कबिता

की कहू,कत्त' हेरा गेल गाम.

..✍👤प्रदीप पुष्प

भूँइयाँमे सूतल छी चारि महला पर
 हिचकैए कानैए प्राण...
 की कहू,कत्त' हेरा गेल गाम
 की कहू,कत्त' हेरा गेल गाम..

१) बड़ बड़  आस ल' एलियै शहर हम,
अपने ढकोसि जे लेलियै जहर हम,
चूसए शोणित एत' धोधि देखा क',
फुसिए अपन गुणगान..
की कहू,कत्त'हेरा गेल गाम...

२) अंगना भकोभम्म घरो कनैत हैत,
बाबूक कोरा लए बौआ रूसैत हैत,
कलौमे साग भात चटनी अल्लू केर,
भूँजल चूड़ा जलपान..
की कहू,कत्त' हेरा गेल गाम..

३) एत्त' सगरो छै राज टाका केर,
कोनो कीमत नइ बोली भाखा केर,
मुँहमे राम राम बगलमे छूड़ी,
घेंटछोप्पा मुसकान..
की कहू, कत्त' हेरा गेल गाम..
की कहू, कत्त' हेरा गेल गाम..
       ✍👤 प्रदीप पुष्प
कवि - प्रदीप पुष्प जी










.....👍

0 टिप्पणियाँ Blogger 0 Facebook

 
अपन मिथिला © 2016.All Rights Reserved.

Founder: Ashok Kumar Sahani

Top