कबिता

कोमल इ हृदयके वेदर्दी बनाकऽ गेलौ
अपनो कानलौ आ हमरो कनाकऽ गलौ॥

दुनियामे जीवऽ लेल किछु नै रहल शेष,
जीवनक वस्तीमे आगि लगाकऽ गेलौ॥

संगे जीयव-मरब खेलौ मन्दिरमे किरिया,
मुदा दोसरे साथ माङ्ग सजाकऽ गेलौ॥

हसिॅ-ठहका संग सब खिल्ली उडाबैय
माथ हमर,सदाके लेल झुकाकऽ गेलौ॥

साचे बड्ड कोसिस केलौ निकालऽ लेल,
अपन छवि दिलमे कतऽ नुकाकऽ गेलौ॥

विद्यानन्द वेदर्दी
राजविराज,सप्तरी
हाल:विराटनगर,मोरङ्ग

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