कबिता

~~समय सर्न्दभ गजल~~

जन्ता सबहक सजायल ख्वाबो बदैल जेत की..!
देखैत रहब एक पलमे चुनाबो बदैल जेत की..!
मन्त्री,प्रधान मन्त्री,राष्ट्रपति होईते मातर
देशप्रती ऐ सबके झुकाबो बदैल जेत की..!
भ्रष्टचार क'के डिष्को मे पिअत विस्की
दारु भट्टीके लोकल शराबो बदैल जेत की..!
सवहक ठोरपर संविधान बनत कहिआ?
आईकाईल कैरते ई प्रश्नके जबाबो बदैल जेत की..!
संविधान बनलाके बाद जहिनाके तहिना
सब देशद्रोही सन नँया नबाबो बदैल जेत की..!

रचनाकार:विद्यानन्द यादव'वेदर्दी'
(सप्तरी,राजविराज)

#अपन_मिथिला

0 टिप्पणियाँ Blogger 0 Facebook

 
अपन मिथिला © 2016.All Rights Reserved.

Founder: Ashok Kumar Sahani

Top