कबिता


साबनके महिना मे परैछै पनिया कि झुमैछै खेतमेँ किसान रे ।

राती अन्हरिया बाजै पपिहरा कखन हेतै बिहान रे । । २ । ।



छुपु छुपु धान रोपै किसान सब गाबैछै बिरह के गीत ।

कान्हा पर कोदारी आ माथपर गगरी करै छै आपस मे प्रित । ।

होते भिनसर मे उठे किसनबा बनबैछै दोसर पलानरे । ।

राती अन्हरिया बाजै पपिहरा कख न हेतै बिहान रे । । २ । ।



हरिहर खेत देखी मन रमाए, अनेक किसिम के बात पुराए ।

याँहे अन्न बेचिके बच्चा पढाएब बनाएब देश के महान रे । ।

राती अन्हरिया बाजै पपिहरा कख न हेतै बिहान रे । । २ । ।



अगहन महिना मे धान कटैछै, घर घर मे नयाँ कोठी बनैछै ।

बोझा बान्ही के लाबै के राखैछै, भरल छै खरिहान रे । ।

राती अन्हरिया बाजै पपिहरा कख न हेतै बिहान रे । । २ । ।

0 टिप्पणियाँ Blogger 0 Facebook

 
अपन मिथिला © 2016.All Rights Reserved.

Founder: Ashok Kumar Sahani

Top