~~~ गज़ल ~~~
कली त खिलल मुदा फुला नै सकल
हृदयसँ गुलाब बनि लगा नै सकल
वसंत बहार सन पहर छल मुदा
सिनेहसँ बाग ओ सजा नै सकल
कथीक कमी छलै हमर नेहमे
खुशीसँ किएक ओ बता नै सकल
बताह बनाक छोडि हमरा चलल
पियास हियाक ओ बुझा नै सकल
नसीब हमर खराब कुन्दन छलै
हिया त मिलल अपन बना नै सकल
लेखक : कुन्दन कुमार कर्ण
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