#अपन_मिथिला अनंत पूजा :
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अनंत भगवान विष्णु सृष्टि के आरंभ में चैदह लोकक 'तल, अतल, वितल, सुतल, तलातल, रसातल, पाताल, भू, भुवः, स्वः, जन, तप, सत्य, मह' केर रचना कयने छलाह । अहि सभ लोकक पालन करबाक हेतु स्वयं 14 रूप में प्रकट भेलाह जाहि सौं अनंत प्रतीत होमेय लगलाह।
ताहि कारणे अनंत पूजा के दिन एक गोट पात्र में दूध, मधु, दही, घी और गंगाजल मिला क्षीर सागरक निर्माण कयल जैत अछि । फेर कचका ताग सौं बनल चैदह गिठ्ठह वाला अनंत सूत्र सौं भगवान अनंत के क्षीर सागर में ताकल जैत अछि । पूजाक पश्चात अहि ताग के अनंत भगवानक स्वरूप मानि पुरूष अपना दाहिना बांहि पर और स्त्री बाम बांहि पर अनंत के धारण करैत छथि।
मान्यता इहो अछि जे युधिस्ठीर के अप्पन राज पाट अहि उपास सौं पुनः प्राप्त भेल छलन्हि।
अनंतक चैदहो गिठ्ठह में प्रत्येक गिठ्ठह एक एक लोकक प्रतीक होइत अछि जकर रचना भगवान विष्णु केने छलाह। अहि प्रत्येक गिठ्ठह में भगवानक ओहि चैदह रूपक वास मानल जैत अछि जे चौदह लोक में वास करैत छथि।
शास्त्रक अनुसार उपनयन संस्कारक पश्चात 14 गिठ्ठह वाला अनंत कोनो पुरूष के धारण करबाक चाही। स्त्री कें विवाहक बाद 14 गिठ्ठह वाला अनंत धारण करबाक लेल कहल गेल अछि। अहि सौं पहिले तेरह गांठ गिठ्ठहक अनंत धारण करबाक चाही जकरा फनंतक नाम सौं जानल जैत अछि ।
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