कबिता

अहां के शरण तेजि अम्बे कतय हम जायब हे
माँ हे हमर ने दोसर आन ककर गुण गायब हे
अहां के शरण...........

विकट दुखक भव रूप कोना कहु बाँचब हे
माँ हे कखन करब भव पार कखन धरि जाँचब हे
अहां के शरण...........

शिशु एक परम अबोध करम केर मारल हे
माँ हे क्षमब सकल अपराध जेना जग तारल हे
अहां के शरण............

दिन-दिन बीतय पहाड़ लागए नहि काटब हे
माँ हे बचल अहीं केर आश अहीं दुख बांटब हे
अहां के शरण............

कहल-सुनल सब बिसरब मोन नहि राखब हे
माँ हे तोड़ब गहन धियान "अमित"दिस ताकब हे
अहां के शरण...........
माँ हे हमर ने.............
अमित पाठक

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