कबिता

चौठचंद्र के अवसर पर
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छोड़ि गेला जे मिथिला धाम।
मोन पड़ै छन्हि अप्पन गाम।
बेटा बेटी जनमल जतय।
मजबूरी बस बसि गेल ततय।
सौ वरष मे चारिम पुस्त।
संस्कार की रहत दुरूस्त।
बोली बदलत बदलत भेष।
मिथिलाकेर कहि देत विदेश।
डूवि जेता फेर चौठी चान।
मैथिल के डूबत पहचान।
मिथिला एहिना रहत उपेक्षित।
मिथिला छोड़ि पड़ायत शिक्षित।
मिथिलावासी करू विचार।
मिथिला के करिऔ उद्धार।
ईर्ष्या द्वेष के त्यागू आई।
मिलिजुलि रहिऔ भाई भाई।
लेखक उमा कान्त झा

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