= = = गजल = = =
आइ सजि-धजिके एतै ओ
भरि मेलामे शोर मचेतै ओ॥
नजरि सँ नजरि मिलते खन,
मोने मोन खुब सरमेतै ओ॥
चलतै नागिन सन ऐठ-ऐठ
पाछा मुरि,मोहनी लगेतै ओ॥
बेकल छै हृदय 'विद्यानन्द'के
रहि-रहिके टिस जगेतै ओ॥
जाति-जाति नेहक वानि सँ,
होस-हँवास लकऽ जेतै ओ॥
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©गजलकार:विद्यानन्द वेदर्दी
राजविराज,सप्तरी
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