कबिता

= = = गजल = = =
आइ सजि-धजिके एतै ओ
भरि मेलामे शोर मचेतै ओ॥

नजरि सँ नजरि मिलते खन,
मोने मोन खुब सरमेतै ओ॥

चलतै नागिन सन ऐठ-ऐठ
पाछा मुरि,मोहनी लगेतै ओ॥

बेकल छै हृदय 'विद्यानन्द'के
रहि-रहिके टिस जगेतै ओ॥

जाति-जाति नेहक वानि सँ,
होस-हँवास लकऽ जेतै ओ॥
* * *
©गजलकार:विद्यानन्द वेदर्दी
राजविराज,सप्तरी

0 टिप्पणियाँ Blogger 0 Facebook

 
अपन मिथिला © 2016.All Rights Reserved.

Founder: Ashok Kumar Sahani

Top