कबिता

भ्रातृद्वितीया आ चित्रगुप्त पूजा

सुखरातिक अन्तिम पाँचम दिन भाय-बहिनक पवित्र प्रेमक प्रतीक पर्व भ्रातृद्वितीया मनाओल जाइत अछि। कार्तिक मासक शुक्ल पक्षक द्वितीया तिथिकेँ मनाओल जायवला एहि पाबनिमे बहिन भाइकेँ नोतै छथि। ठाँव-अरिपन कयल स्थानपर अरिपन कयल पीढ़ी राखि ओहिपर भाइकेँ बैसाओल जाइत अछि। आगाँमे मटकूरमे पानि, पान, अँकुरी, द्रव्य, कुम्हरक फूल राखल रहैत अछि। भाइ अपन आँजुर बहिनक आगाँ रखै छथि। बहिन भाइकेँ पिठार आ सिन्दूरक तिलक लगबै छथि। फेर हाथपर पिठार आ सिन्दूर लगा मटकूरसँ पान, अँकुरी आदि बहार कऽ भायक हाथपर राखि ओकरा जलसँ धोइत मटकूरमे खसबैत बहिल हुनक दीर्घ जीवनक कामना करै छथि। ई क्रम तीन बेर होइत अछि। एकर बाद बहिन अँकुरी खोआ भाइकेँ अपना ओहि ठाम भोजन सेहो करबै छथि। बहुत ठाम एहि दिन बहिन लोकनि सामूहिक रूपसँ बजरी कुटबाक परम्पराक निर्वाह करै छथि। ई मिथिलाक परम्परा नञि अछि, मुदा मिथिलोमे एकर नीक चलनसारि भऽ गेल अछि। बहिन सभ बजरी कुटबाक बाद अपना भाइ केर प्रसंग अशुभ बाजि जीहमे रेगुनीक काँट गड़ा पश्चाताप करैत भाइ केर मंगलकामना करै छथि। एमहर एही दिन चित्रगुप्त पूजा सेहो होइत अछि। मिथिलाक कायस्थ समाज एहि दिन भगवान चित्रगुप्तक पूजन करै छथि। एहि दिन ओ सभ कलम-दवात पूजा-स्थलपर रखै छथि आ लिखबा-पढ़बासँ परहेज करै छथि। अनेक ठाम सार्वजनिक रूपसँ भगवान चित्रगुप्तक भव्य प्रतिमा स्थापित कऽ पूजन होइत अछि। एहि अवसरपर सांस्कृतिक कार्यक्रमक संग कायस्थ समाजक प्रतिभावान नेना लोकनिकेँ पुरस्कृत सेहो कयल जाइत अछि। कहबा लेल तँ ई कायस्थ समाजक धार्मिक उत्सव अछि, मुदा एहिमे समग्र समाज समवेत
होइत अछि। भगवानक दर्शन करबाक लेल तँ पहुँचिते छथि, बहुतो ठाम आयोजनमे सक्रिय सहभागिता सेहो रहैत अछि। पूजनक अगिला दिन मूर्त्ति विसर्जनक संग चित्रगुप्त पूजाक समापन होइत अछि।एकरा संगहिँ सम्पन्न होइत अछि मिथिलाक सुखराति किंवा सुखरात्रि। एकरा लगले आरम्भ भऽ जाइत अछि सूर्याेपासनाक महापर्व छठि केर तैयारी। एहि बेर शुक्र 1 नवम्बरसँ आरम्भ भऽ रहल अछि सुखराति। आउ हमरो लोकनि एहिमे समवेत होइ आ समग्र मिथिला धन-धान्यसँ परिपूर्ण हो आ सभ तरि सुखे सुख हो तकर मंगलकामना करी।

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