कबिता


सिताप्रियाशंकरौबन्दे‬

वन मे देखलहुँ से फोटो बनबियौ |
मिथिला माँटिक धिया ,हेयै, भौजी सिया ,किछु सुनबियौ ?
वन मे देखलहुँ से फोटो बनबियौ |
बसही कागत सुभग अछि जोगाओल,वाँग केर दिब्य पिहुआ बनाओल ,
रंग सभ रंग केर,अछि कलम ढंग केर,आब कनियोँ ने देरी लगबियौ |
वन मे देखलहुँ से फोटो बनबियौ ||
हम तँ ससुरे मे वार्ता बुझलियै, वन मे जाइत ने भैया देखलियै,
वेष तपसिक बना ,नृप ,प्रजाजन कना,कोंढ पाथर बनल से देखबियौ |
वन में देखलह से फोटो बनबियौ||
कोना अबधक प्रजा घेरि लेलक, सोझ बाटेँ ने वन जाय देलक .
जन सुतल छोड़ि केँ, छल सँ मुँह मोड़ि केँ,कोन तरहेँ गेलहुँ से बुझबियौ |
वन मे देखलह से फोटो बनबियौ ||
कोना केवट चरण रज पखारल ,नाव मे पार गंगा उतारल |
सभ तपोवन गेलहुँ,मुनि के दर्शन कयलहुँ,देखलहुँ–सुनलहुँ से झट दरसबियौ |
वन में देखलहुँ से फोटो बनबियौ ||
पञ्च बटीया मे कुटीया बनौलहुँ ,वन के बासी सँ की गप्प कएलहुँ,
सूर्प नखिया आएलि,कोना भेली घाएलि,चित्र मे नक् कटी केँ देखबियौ |
वन में देखलहुँ से फोटो बनबियौ ||
मायामृग देखि केहि बिधि लोभेलौं, मारवा लय पिया केँ पठयलहुँ,
राम केर वेदना ,स्वर केँ चीन्हल कोना ,?जिद्द तोरल लषण से बुझाबियौ |
वन मे देख्लहुँ से फोटो बनबियौ ||
आएल रावण बनल मुनि तपस्वी,राम लक्षुमण केँ कहि- कहि यशस्वी ‘
भिक्षा देबा लय फल,लक्षुमण रेखो टपल,कोना केलक हरण से जनिबियौ |
वन मे देखलहुँ से फोटो बनबियौ ||
आकरण सुनि जटायू लड़ल छल ,रावणक खड्ग पैंखो कटल छल ,
झोंटा धए केँ अँहक,लय चढ़ा पुष्पकक,कोना बीतल घड़ी से बतबियौ |
वन में देखलहुँ से फोटो बनबियौ ||
शोक बगीया मे कोना रहलियै, नित दिन रावण के धमकी सुनलियै,
भौजी रावण केहन ,हूँ –बहू हो जेहन ,चित्र पट पर बना केँ देखबियौ ||
वन मे देखलहुँ से फोटो बनबियौ ||
ननदी कहलनि से चित्रो बनौलन्हि ,क्रमशः चित्राबली केँ देखओलन्हि,
चित्र रावण बना अतिशय प्रमुदित मना ,सभ क्यों देखय ततय टँगबबियौ |
वन मे देखलहुँ से फोटो बनबियौ ||
अंतिम फोटो नेने ननदी चलली ,झट दे रघुवर के सोझाँ पहुँचली , भैया!
भौजी के मन ,कएलक रावण हरण ,चट दय जादू ओ टोना करबियौ |
वन मे देखलहुँ से फोटो बनबियौ ||
चित्र ओकरे बनाबैछ हरदम ,बैसि एकांत चिंतन मे उन्मन .
प्रतिपल सुमिरण करथि,गप्प ओकरे गढ़थि किछु दिन भौजी केँ नहिड़ा पठबियौ |
वन मे देखलहुँ से फोटो बनबियौ ||
सुनि केँ रघुवर दूनू आँखि मूनल ,ईकी उपराग सीताक सूनल,
दीर्घ निश्वास लय ,मन मे बिश्वास लय ,सोचल लीला कते हम बढबियौ |
वन मे देखलहुँ से फोटो बनबियौ ||
सोचि किछु क्षण पवन सुत बजाओल, कान मे कहि एकांती बुझाओल ,कहलनि बुधियार छी ,अतिशय होसियार छी ,आब कनियोँ ने देरी लगबियौ
वन में देखलहुँ से फोटो बनबियौ ||
कहबनि सीता केँ नहिडा देखाएब ,किछु दिन उपरान्त साकेत लाएब ,
राम केर भावना ,छल अहुँक कामना ,अंक जननीक बिश्राम पबियौ |
वन में देखलहुँ से फोटो बनबियौ ||
हम नहि सीता अयश सूनि पाएब ,नीक होएत अबध सँ हटाएब,
जाहि भूमिक धिया ,तेहिठाँ रहती सिया ,हनुमत् ईक्षा हमर से पुरबियौ ||
वन मे देखलहुँ से फोटो बनबियौ ||
कानि हनुमंत बजलाह नहि –नहि ,ककरो कहने ई संशय उचित नहि ,
जननी छथि सोझ मति ,जानथि नहि टेढ़ गति
बहिनिक हास्यक तँ अर्थो लगबियौ |
वन मे देखलहुँ से फोटो बनबियौ ||
ई ननदि भौज केर गप्प रसगर ,प्रभु अहूँ केर परीक्षा ई कसगर ,
अँह सिया में ठनत ,हास्य बढ़ियाँ बनत ,हँसि केँ बहिनक कथन अनठबि यौ ||
वन में देखलहुँ से फोटो बनबियौ ||
ब्रह्मचारी अहाँ भय केँ हनुमत् ,नारि मनभाव पढलहुँ कहू कत ऽ?
बूझि गप्पक ने रस ,करितहुँ अन्याय बस ,एहिना सर्वस्व “मधुकर”बचबियौ |
वन मे देखलहुँ से फोटो बनबियौ ||

मधुकर‬

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