कबिता

यै पार सँ ओई पार तक अछि इतिहास हमर ।
अधुरे अछि होबलेल काज बहुत रास हमर ।।

ककरोसँ कियाक डरब सत्यक बाट पर ।
अछि माँ जानकीक' असीम अनुकम्पा पास हमर ।।

पलायण करि नहि जायब कहियो रण परसँ ।
अभावेमे रहि हेरा गेल अछि डर त्रास हमर ।।

बनि मौधमाछी मेहनत करब नित एकतामे ।
तब पुरा होएत अहाँक' सपना आ आस हमर ।।

समहरिक' चलब बिकट बाट हम पथदर्शी ।
भेल अछि बहुतो आगि पानिसँ आभास हमर ।।

करब विश्वास आब नहि ककरो प्रति मधुशाला ।
जे सतेलक आई धरि छल सहोदर खास हमर ।।

© नारायण मधुशाला...!!!

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