कबिता

कोमल तन आ रूप सुरेबगर,
ककरा लेल जोगा रखने छी
घुईर एकहु बेर एम्हरो ताकु,
हमहुँ आश लगा रखने छी
ककरा लेल जोगा............

मोन में बैसल छी, जेना मूरति कोनो
जँचए ने हिर्दय के, आन सुरति कोनो
प्यास पिरीतक जानि कखन धरि,
आबि मिझएब अहां
मद्-मातल एहि यौवन लए हम,
रातुक स्वप्न सजा रखने छी
ककरा लेल जोगा............

विधाता गढ़ि-गढ़ि क' बनौलनि आहां के
रूप-गुण गहि-गहि क' सजौलनि आहां के
प्राण बसए अहीं में हम्मर,
जानए भरि दुनियां
रैन-दिवस अहीं के सुधि में,
आँखिक नीन्न बिला रखने छी
ककरा लेल जोगा............

सेहन्ता मोनक जे बांहि में भरि लीतहुँ
प्रेम के सागर में डूबि जिनगी जीतहुँ
मोन कते परतारब कहु प्रिए,
ताकब कत् आशा
दुईर सभक सोझां कएलहुँ फेर,
लाजक घोघ खसा रखने छी
ककरा लेल जोगा............
कोमल तन आ................

अमित पाठक

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