कबिता

ठंडी एलै जार लागैया,
थर-थर थर-थर देह काँपैया।
स्विटर, मोफलर टोपी निकलल,
हाथ पैर सब सेहो सिकुरल।
दूभि' खसल जे ओस जमैया।
ठंडी एलै जार .....

ई जरलाहा जार जे एलै,
सुरजो एकरे डरे नूकेलै।
बहि सीतलहरि डंक मारैया।
ठंडी एलै जार .....

धुंधि जेना घनधोर अन्हरिया,
एकै रंग भोर, सांझ दुपहरिया।
हाथक हाथ ने किछू सूझैया।
ठंडी एलै जार .....

की मोटका, कमजोर पतरका,
बच्चा बुढ़ की लोक जवनका।
खोरि खोरि क घुर तापैया।
ठंडी एलै जार .....

कूकूरो जार सँ कुं कुं कऽरै,
माल-जाल त घासो नै चऽरै।
जीब जंतु सब ठिठूरी रहलया।
ठंडी एलै जार .....

मोन करै घर धुसले रहितौं,
ओढ़ि गदेला सुतले रहितौं।
पेटबोनियां ला निकलऽ परैया।
ठंडी एलै जार .....

कतेक रोजीना खिचड़ी पकबी,
टाट ऊजारि क घुरा जरबी।
गरम चाह पी लोल पाकैया।
ठंडी एलै जार .....

जुरल छै जेकरा ए सी हीटर,
खुब जराबै बढ़बै मीटर।
निर्धन चुल्हाक आगि सेबैया।
ठंडी एलै जार .....

हौव दैबा की हेतै ओकरा,
नै छत जारक कपड़ा जेकरा।
सोचि मन सिसकी उठैया।
ठंडी एलै जार लागैया,
थर-थर थर-थर देह काँपैया।

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