मैथिल संस्कृति में पान के सभ तरहें शुभ मानल जैत अछि। धर्म, संस्कार, आध्यात्मिक आ तांत्रिक क्रिया में सेहो पानक उपयोग पूर्वहि सौं होइत आबि रहल अछि।
आउ आई पान के गुण सौं होइत छी...
पान के दस ग्राम कपूरक संग दिन में तीन-चारि बेर चिबयला सँ पायरिया केर शिकायत दूर भ जैत अछि। एकर इस्तेमाल में ई सावधानी राखब आवश्यक होइत अछि कि पानक पीक पेट में नै जाई।
एकरा अलावा चोट लगला पर पान के गर्म कs परत-परत कय चोट वाला जगह पर बांधबाक चाहि। अहि सँ किछु घंटा में दर्द दूर भs जैत अछि । उकासी अबैत हुए तs गर्म हरैद के पान में लपेट कs चिबाबी।यदि उकासी रैत में बेसी भs जैत हुए तs हरैद के जगह जमैनक संग पान चिबेबाक चाही। यदि किडनी खराब हुऐ त पानक उपयोग बिना कीछ मिलौने करबाक चाही। जरला या छाला पड़ला पर पानक रस कें गर्म कय लगौला सौं फोंका ठीक भs जैत छैक। पीलिया ज्वर आ कब्ज में सेहो पानक इस्तेमाल बहुत फायदेमंद होइत छैक। जुकाम भेला पर पान में लौंग राखि के खयला सँ जुकाम जल्दी पाकि जैत छैक। श्वास नली केर बीमारी में सेहो पानक इस्तेमाल अत्यंत कारगर होइत छै। पानक तेल गर्म कय छाती पर लगातार एक हफ्ता तक लगौला सँ स्वास् नली के बीमारी ठीक होइत अछि।
ओना त अपना देश में अनेकों प्रकारक पान भेटैत अछि। अहिमे मगही, बनारसी, गंगातीरी आ देशी पान औषधिक रूप में ज्यादा कारगर सिद्ध होइत अछि। भूख बढेबाक, प्यास मेटेबाक आ मसूड़ केर समस्या सँ निजातक लेल बनारसी आ देशी पान फायदेमंद साबित होइत अछि।
संकलन एवं मैथिलीअनुवाद : नीरज मिश्र मुन्नू
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