कबिता

● गजल ●

कहु याद केकरो एते सताबैछै किए?
हर क्षण नोर हकनी कनाबैछै किए?

आवि सपनामे ल' जाय होस अनेरे,
राति-राति निन्द एना उडाबैछै किए?

मोन पडैय जखन मोहनी सुरतिया,
बेर-बेर टिस छातीमे जगाबैछै किए?

किछ नइ सुझाईय प्रिय-प्राण विनु,
स्नेह सबकेर आन्हर बनाबैछै किए?

बाट निहारैत बरिषहुँ सँ छी बैसल,
बात इ बुझितो,ओ नइ आबैछै किए?

* * *
© विद्यानन्द वेदर्दी
राजविराज,सप्तरी
हाल:विराटनगर,मोरङ्ग

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