कबिता

एक माँ के अछि दुनु बच्चा
त किया ने अछि बेटा-बेटी एक समान
दोसर के परवाह छोइर आब
एकर मिथिला सँ सुरुबात करु।

कोइख मे बेटी किया अहाँ मारव
पापक भागी किया अहाँ बनव
इ गलती नय फेर करव
इ बात अहाँ स्वीकार करु।

लाड प्यार सँ पालव बेटी
जहिना किसान करैत अछि खेती
बेटा सँ की कम अछि बेटी
एही बात पर तनीक विचार करु।

बेटे जका बेटी के पढ़ाबू
दू रंग के अहाँ भेद मिटाबू
पूरा सिक्षा के अधिकार भेटय
इ बातक अंहा प्रचार करु।

पैढ लिख के अफसर बनती
गाम समाज मान बढेती
पैघ हैत अहाँ के सम्मान
एही बात पर कनीक त गौर करु।

बियाह करब अठारह के बादे
किछो कहें चाहे लोग समाज
बचपन मे बियाह क के अहाँ
नय अपन बेटी के जिनगी बरबाद करु।

जन्म देने छि बेटी जे अहाँ
ओकरा लेल छि भगवान अंहा
ओकर जिनगी के खुसिहाल बना के
माँ-बापक कर्तब्य अहाँ पूरा त करु।

जय मिथिला जय मैथिलि

रचना - अज्ञात

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