कबिता

आवि जाऊ अपन गाम मे
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मैथिली कविता संग्रह परदेश सॅ
रचना:- अमित (सुन्दर पुर)
मंज्जर के दिन बितल भैया
कोसा पड़ लागल आम मे
किछ नही सोचु नही देरी करू
आवि जाऊ अपन गाम मे
बीरो उठी उठी रास्ता बुहारै
फुही उडैत धुल सुताबै
कोयली कुके कौआ कुचरै
सब कोई बजाबै इ ठाम मे
किछ नही सोचु नही देरी करू
आवि जाऊ अपन गाम मे
परदेशक गरमी जरल
उमश आ पशेना सॅ भरल
भागम भाग लागल अछि ओत
नहि मिलत इ सब गाम मे
किछ नही सोचु नही देरी करू
आवि जाऊ अपन गाम मे
गाम अपन सब सॅ सुन्दर
मंदिर पोखरी सब छई अंदर
बस ट्रेन सब गाम सॅ चलै या
भजन बाजै हर भोर सांझ मे
किछ नही सोचु नही देरी करू
आवि जाऊ अपन गाम मे
खुलल खुलल मैदान एत पर
निपल पोतल घर दुआइर
सोनगर सुगंध चहु दिशा फैलै
माइट सॅ होइये श्रृंगार
मोल करब केतबो नही मिलत
लाख टका के दाम मे
किछ नही सोचु नही देरी करू
आवि जाऊ अपन गाम मे
नेन्ना भुटका खुशी सॅ कुदैया
गरमी छुट्टी सेहो अबैया
सब किछ त बंदे रहतै
खेलब किछ दिन खेत खलिहान मे
किछ नही सोचु नही देरी करु
आवि जाऊ अपन गाम मे
बंबईया आम लीच्ची पाकैय लागल
खजूर जलेबी सेहो मंज्जरायल
पाकल कटहर के कुऑ नेढा
मिलैया सब कम दाम मे
किछ नही सोचु नही देरी करू
आवि जाऊ अपन गाम मे
गाम मे लोक के मोन लागल छई
लाट बाबू किया परदेश परल छई
परदेश मे अपन पहचान बनौलेन
सब के अपन नाम जनौलेन
गाम नही छैन्ह ध्यान मे
किछ नही सोचु नही देरी करू
आवि जाऊ अपन गाम मे
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