कबिता

छियौ हमहूँ नञि आन, मा गे दर्शन दही ।
लागल तोरे पर धियान, मा गे दर्शन दही । ।

रातियो तोंही बनेलही, केलही तोंही मा प्रात ।
फूल तोरे सृजन छौ ,सृजन तोरे बेलपात ।।
सगर सृष्टि छौ तोरे संतान, मा गे दर्शन दही ।

तोहर ममताकेँ छाहरि तर, हम सुती निचेन ।
नीक छै की बेजए, हमर जिनगी तोरे देन ।।
बाट नीके चली से चाही वरदान मा गे दर्शन दही ।

तों शिवके शिवानी, मा भवसँ भवानी तोहीं ।
इन्द्रोकँ जे बचेलही , से मा इन्द्रानी तोहीं ।।
लिखलेँ तोहीं जगकेँ विधान, मा गे दर्शन दही ।

~> मैथिल प्रशान्त
दुर्गौली, बेनीपट्टी ।

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