चैत बहय पुरिबा धुरझाड़ो, से तन सहि ने सकै छी
लेखक - श्री अमरनाथ झा
ई मौसिम की कहि रहलैए, से हम कहि ने सकै छी ।
चैत बहय पुरिबा धुरझाड़ो, से तन सहि ने सकै छी ।।
साँझ-भोर मेघ लागल सन, दिन मे किछुकिछु गुमकी ।
कहियो काल भोर कुहेश ,जनु मौसिम चढ़लै उमकी ।।
मिथिला मे ई हाल,देश भरि दहन, ताप केर गरमी ।
कत्तहु बरिसय आगि , कतौ रब्बी मे आएल नरमी ।।
जे किछु होइ, होइ अतत्तह ,प्रकृति विपर्जय काया ।
कतौ हो छाहड़ि, रौद कतहु हो, सभ ईश्वर केर माया ।।
लेखक - श्रीअमरनाथ झा
07/04/2017।
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पोस्ट - अशोक कुमार सहनी
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लेखक - श्री अमरनाथ झा
ई मौसिम की कहि रहलैए, से हम कहि ने सकै छी ।
चैत बहय पुरिबा धुरझाड़ो, से तन सहि ने सकै छी ।।
साँझ-भोर मेघ लागल सन, दिन मे किछुकिछु गुमकी ।
कहियो काल भोर कुहेश ,जनु मौसिम चढ़लै उमकी ।।
मिथिला मे ई हाल,देश भरि दहन, ताप केर गरमी ।
कत्तहु बरिसय आगि , कतौ रब्बी मे आएल नरमी ।।
जे किछु होइ, होइ अतत्तह ,प्रकृति विपर्जय काया ।
कतौ हो छाहड़ि, रौद कतहु हो, सभ ईश्वर केर माया ।।
लेखक - श्रीअमरनाथ झा
07/04/2017।
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कवि - श्री अमरनाथ झा जी |
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पोस्ट - अशोक कुमार सहनी
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