कबिता

मोन होइए काजरक रंग मे रांगल रहितौं

✍मनीष झा 


मोन होइए...
आँखिक एकटा पिपनी रहितौं
अहिंक नयन घर हम बसि जैतहुँ
नजैरक पहरेदार बनि कए हम
काजरक रंग मे रांगल रहितौं

मोन होइए...
अहाँक पायल केर घुंघरू रहितौं
डेग धरैत स्वागत हम बजितहुँ
छन्-छन् छुन्-छुन् संगीत सुनबितहुँ
क्षण-क्षण अहाँक मनोरंजन करितौं 

मोन होइए...
अहाँक गरदैनक हार बनि जैतहुँ
सदिखन हम हृदयस्पर्षित रहितौं
गूथल रहितौं नेहक ताघा संग
टुटितो चरण अहींक हम सजितौं

मोन होइए...
अहाँक फुलबारी'क गुलाब हम रहितौं
अहींक हाथ सँ तोड़ल जैतौं
पबितहुँ भोरे पहिल स्पर्ष जे सु:खमय
फेर मुरछाईतो आनंदित होइतहुँ

मोन होइए...
झुमका अहाँक कान केर रहितौं
झूलैत - झूमैत हम मुखचुम्बन करितौं
ओहि अमोल स्पर्शक सप्पत
हे हमर कल्पनाक कविता ! 
अहाँ लेल अर्पण सब किछु करितहुँ
मोन होइए...
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...✍मनीष झा

कवि - मनीष झा जी 

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