वाह रे! केहेन लोभौआ प्रस्ताब छलै ओकर
✍👤विद्यानन्द वेदर्दी
जीनगीक साथ खेलवाक स्वभाब छलै ओकर
कोना कहुँ हम यौ मित, नै जवाब छलै ओकर॥
हमरे सन पियक्कड़ बनौने हेती जानि नै कते?
जुआनी अनमन अंग्रेजिया शराब छलै ओकर॥
निस्वार्थ भावना सँ जान-प्राण लुटेलौ मुदा,
दू कौड़ीके स्वार्थमे डुबल ख्वाब छलै ओकर॥
हिया लगेलौ काँट गड़ै सन लहुलहुआन भेल,
देखावटीक खातीर हिया गुलाब छलै ओकर॥
'साँस छोड़ि दै हमरा, हम नै छोड़ब अहाँके',
वाह रे! केहेन लोभौआ प्रस्ताब छलै ओकर॥
ओझराएल रहै अनेरे अनबुझ 'विद्यानन्द',
क्षणिक स्नेह गणितके हिसाब छलै ओकर॥
_________________________________
✍👤 विद्यान्नद वेदर्दी
राजबिराज ,सप्तरी ,नेपाल
• २०७४\०१\२८
।![]() |
कवि- विद्यानन्द वेदर्दी जी |
0 टिप्पणियाँ Blogger 0 Facebook