आउ कऽ दी श्रृंगार ।
✍👤मनीष झा
उठा लितहुँ कोर हम
चूमि लितहुँ ठोर हम
गरवा मे बांहिक हार
आउ कऽ दी श्रृंगार ।।
श्वेत पुष्प , केश मे
देब कंगना सनेश मे
आँखि काजर के धार
आउ कऽ दी श्रृंगार ।।
घुँघरू , पैजनियाँ सँ
झुमका , नथुनियां सँ
सजाएब अप्पन संसार
आउ कऽ दी श्रृंगार ।।
अहाँ छी परान सन
दाग रहित चान सन
ओहि पर टिम-टिम सितार
आउ कऽ दी श्रृंगार ।।
सोझां मे बैसि जाउ
आउ कने ल'ग आउ
लागल स्नेहक पथार
आउ कऽ दी श्रृंगार ।।
त्यागि दियौ लाज-धाख
राखि दियौ कोनो ताख
करू आमंत्रण स्वीकार
आउ कऽ दी श्रृंगार
हे, डऽर होइए बेक्कार
आउ कऽ दी श्रृंगार ।।
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...✍मनीष झा
✍👤मनीष झा
उठा लितहुँ कोर हम
चूमि लितहुँ ठोर हम
गरवा मे बांहिक हार
आउ कऽ दी श्रृंगार ।।
श्वेत पुष्प , केश मे
देब कंगना सनेश मे
आँखि काजर के धार
आउ कऽ दी श्रृंगार ।।
घुँघरू , पैजनियाँ सँ
झुमका , नथुनियां सँ
सजाएब अप्पन संसार
आउ कऽ दी श्रृंगार ।।
अहाँ छी परान सन
दाग रहित चान सन
ओहि पर टिम-टिम सितार
आउ कऽ दी श्रृंगार ।।
सोझां मे बैसि जाउ
आउ कने ल'ग आउ
लागल स्नेहक पथार
आउ कऽ दी श्रृंगार ।।
त्यागि दियौ लाज-धाख
राखि दियौ कोनो ताख
करू आमंत्रण स्वीकार
आउ कऽ दी श्रृंगार
हे, डऽर होइए बेक्कार
आउ कऽ दी श्रृंगार ।।
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...✍मनीष झा
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कवि - मनीष झा जी |
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