कबिता

निहत्था बनल ,ओ जनता_सीपाही कि ?

✍👤गजेन्द्र गजुर

#हुइस_फुइस_बातो_सँ_लडै_ओ, राही कि ।
ज्ञानक धाह पर ,तपे नै ओ कराही कि ?

लुटै अस्मिता घिँच बजारि ,सोझे मे मीत ।
निहत्था बनल ,ओ जनता_सीपाही कि ?

जुलुम वर्षे सती पकडै छै तलबार ।
छोपि रावण के, मानू अबला-बेसाही कि ?

बस्तिए बस्ती सुडाह कदै, एक्हन लुत्ती ।
चुगल मोछ नइ जरल,  ओ पसाही कि ?

दिन राति केर निन्न फुरर द उडैय
#भुखल_मोनमे_दाना_भरि_गजुर ,आ चाही कि ?

✍👤गजेन्द्र गजुर 
हनुमाननगर यो.मा. नगरपालिका
हाल -लहान
कृषि अध्ययन रत
कवि - गजेन्द्र गजुर जी



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