कबिता

हमर कनिया घोघे तर सँ बुलेट चलबैए

.✍👤विद्यानन्द वेदर्दी 

चारो पहर,छाती भित्तर,जिलेट चलबैए
हमर कनिया घोघे तर सँ बुलेट चलबैए॥

ज्या बेर देखैछी लगैए पहिले बेर देखलौ,
छु मन्तरक वाणि मिनटे मिनेट चलबैए॥

अपना लए एक अक्षर कारी भैँस बराबर,
ओ कमप्यूटर सँ लक' इन्टरनेट चलबैए॥

टुटल उजड़ल फुस घरके मानि मकान,
मेहनतिएक पर-पकवान सँ पेट चलबैए॥

रूसि फुलि जाए जौ ढेनमा ढेनमी हमर,
हम पेन्ठी-जुआली,ओ चकलेट चलबैए॥

घर सँ अंगना-दुआर,खेत सँ खरिहान धरि
सभक सेवामे दैनिकी अपन डेट चलबैए॥
_______________________________
 ..✍👤 विद्यानन्द वेदर्दी
राजबिराज, सप्पतरी, नेपाल


कवि - विधानन्द वेदर्दी जी

0 टिप्पणियाँ Blogger 0 Facebook

 
अपन मिथिला © 2016.All Rights Reserved.

Founder: Ashok Kumar Sahani

Top