कबिता

अहींक  आँखि केर  सागरमे भासल हम  छी 


✍👤किसलय कृष्ण 


कनेक बस नेह केर सजनी पिआसल हम छी ।
अहींक  आँखि केर  सागरमे भासल हम  छी ।

लैत जान छी ,दैत छी मंद मंद मुस्कान जखने,
प्रेमरस पान लेल युगसँ एतय उपासल हम छी।

देखैत देरी मोनमे अनजान सन रणभेड़ी बजै ,
मीठ सन  बोल केर चक्कू सँ तराशल हम छी।

कहतै की जमाना हमरा,तकर नै परवाह कोनो,
प्रेमक डोरिेेमे  किछु तहिना  फाँसल हम छी ।

करेजक कोनमे छी रखने, बस अहींक फोटो ,
भावक खेत जेना समारल आ चासल हम छी।

नुका राखब कतेक मोनक बात कहू किसलय,
जनैत छी ओहि नैन केर त अखियासल हम छी।

✍👤किसलय कृष्ण 
सहरसा -०१

कवि - किसलय कृष्ण जी

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