#गीत_अपन_पहिचान_केर......
✍👤किसलय कृष्ण
जागि जो आबो रे मंगला ! समय बहुत बलमान ।
अपना गामक हटिया पर एलौ परदेसी पकमान ।
मुरही-कचरी पहिचान बिलायल,
सभ मगन भेल छोला-भठूरामे ।
शीतलता ओ कतय दोसर ठाम ,
जे अछि तिरहुत केर दही-चूड़ामे।
गली-गलीमे चाउमिनक ठेलासँ भ जो सावधान ।
अपना गामक हटिया पर एलौ परदेसी पकमान ।
बगिया सन केर स्वाद नइं भेटतौ,
अनठिया इडली,साम्भर,डोसामे।
दलिपिट्ठी कें एना किए बिसरलें,
कह भाइ मोमो आओर समोसामे।
जाहि माटिमे जनम भेलौ,किए तकरे ल बेईमान ।
अपना गामक हटिया पर एलौ परदेसी पकमान ।
स्वाद गेन्हारीक सागमे सोन्हगर ,
छै केहेन मजा तरूआ तिलकोरमे।
टिकुला केर चटनी खातिर मीता ,
जाइ छलहुँ गाछी भोरे - भोरमे ।
गामसँ प्रवासो धरि करू मैथिलपन केर सम्मान ।
तखने बाँचत मीता, अप्पन मिथिलाक पहिचान ।।
गीतकार ✍👤किसलय कृष्ण
✍👤किसलय कृष्ण
जागि जो आबो रे मंगला ! समय बहुत बलमान ।
अपना गामक हटिया पर एलौ परदेसी पकमान ।
मुरही-कचरी पहिचान बिलायल,
सभ मगन भेल छोला-भठूरामे ।
शीतलता ओ कतय दोसर ठाम ,
जे अछि तिरहुत केर दही-चूड़ामे।
गली-गलीमे चाउमिनक ठेलासँ भ जो सावधान ।
अपना गामक हटिया पर एलौ परदेसी पकमान ।
बगिया सन केर स्वाद नइं भेटतौ,
अनठिया इडली,साम्भर,डोसामे।
दलिपिट्ठी कें एना किए बिसरलें,
कह भाइ मोमो आओर समोसामे।
जाहि माटिमे जनम भेलौ,किए तकरे ल बेईमान ।
अपना गामक हटिया पर एलौ परदेसी पकमान ।
स्वाद गेन्हारीक सागमे सोन्हगर ,
छै केहेन मजा तरूआ तिलकोरमे।
टिकुला केर चटनी खातिर मीता ,
जाइ छलहुँ गाछी भोरे - भोरमे ।
गामसँ प्रवासो धरि करू मैथिलपन केर सम्मान ।
तखने बाँचत मीता, अप्पन मिथिलाक पहिचान ।।
गीतकार ✍👤किसलय कृष्ण
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