कबिता

।।।।------माँ गै ।।
✍👤मैथिल प्रशान्त 


छी  करेजाक  टुकड़ी,  तोहर संसार  हऽम माँ गै ।
ठाँव पीरही  अरिपन , पावैन  तिहार हऽम  माँ गै । ।

आँचरके डिजाइन छी, तोहर खूट महक पाइ हऽम --
मानै छीही भैयोके, मुदा ममता दुलार हऽम माँ गै ।।

परलै चुटकी भरि सिनूर,आ भऽ गेलियौ आन सन --
मानबै हऽम कोना, ई निठूर बेहवार  हऽम माँ  गै ।।

छोड़ि तोड़ा जोड़बै हऽम कोना,नाता कऽह आन सँ --
गाछक  फऽल छलियौ, किइए  भार हऽम  माँ गै ।।

भैयोके भरदुतिया , कानि कानि बितेने नञि बिततै ---
जोहबै सासुरमे बाट , पिसि कऽ पिठार हऽम माँ गै ।।

सासुरमे आबके ,हमरा रानी बेटी कहि कहि बौसतै --
देखहो लाए तोरा ,दोसरेके बसमे लाचार हऽम माँ गै ।

~> मैथिल प्रशान्त 
      दुर्गौली, बेनीपट्टी ।
कवि - मैथिल प्रशान्त जी

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