|| प्रायश्चित ||
✍👤विकाश वत्सनाभ
विपन्नताक खापड़ि मे
फोंका मखानक लाबा ओलैत
जे जोगौने छलहुँ रत्ती भरि संस्कारक आँच
आइ सेहो मिझा लेलहुँ अपनहि
तिलयुगा नदीक नीर सँ
जखन सिआहे भेल अछि समुच्चा संसार
तखन किएक राखी उज्जर अपन पाग ?
किएक ने बोहिआए दी एकरा
कोनो 'नैन्सी' सन धियाक सारा सँ उठैत
समदाउनक प्रलाप मे ?
ओहि अंतिम हुकक अहुरिया
जखन कि डिमहा पर नाचि रहल होएब हम-अहाँ
आ गोतियारी गिद्धक चाँगुर मे छटपटाइत
निष्प्राण भेल होएत अपेक्षा
तखन कादो सँ काठ भए रहल संवेदना मे
कोना परिभाषित होएत मनुख ?
एखन नहि फाटल अछि धरती
शांत अछि समुद्र,
ओहिना छिरिआएल अछि सौँसे सिंगरहार
गोटरस खेलाइत हँसि रहलीह अछि धिया
स्त्रीक समुच्चा प्रभेद,
आइ प्रायश्चितक साक्षी होबए चाहैत अछि
कहू, कतए ठाढ़ होएब हम-अहाँ ?
✍👤 विकाश वत्सनाभ, ०३/०६/२०१७
#Justice4Nancy
✍👤विकाश वत्सनाभ
विपन्नताक खापड़ि मे
फोंका मखानक लाबा ओलैत
जे जोगौने छलहुँ रत्ती भरि संस्कारक आँच
आइ सेहो मिझा लेलहुँ अपनहि
तिलयुगा नदीक नीर सँ
जखन सिआहे भेल अछि समुच्चा संसार
तखन किएक राखी उज्जर अपन पाग ?
किएक ने बोहिआए दी एकरा
कोनो 'नैन्सी' सन धियाक सारा सँ उठैत
समदाउनक प्रलाप मे ?
ओहि अंतिम हुकक अहुरिया
जखन कि डिमहा पर नाचि रहल होएब हम-अहाँ
आ गोतियारी गिद्धक चाँगुर मे छटपटाइत
निष्प्राण भेल होएत अपेक्षा
तखन कादो सँ काठ भए रहल संवेदना मे
कोना परिभाषित होएत मनुख ?
एखन नहि फाटल अछि धरती
शांत अछि समुद्र,
ओहिना छिरिआएल अछि सौँसे सिंगरहार
गोटरस खेलाइत हँसि रहलीह अछि धिया
स्त्रीक समुच्चा प्रभेद,
आइ प्रायश्चितक साक्षी होबए चाहैत अछि
कहू, कतए ठाढ़ होएब हम-अहाँ ?
✍👤 विकाश वत्सनाभ, ०३/०६/२०१७
#Justice4Nancy
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कवि - विकाश जी |
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