कबिता

आहिरो बा..! इ कि भेलै?
माननिय जी त छटा गेलै
हौ दादा हौ दादा
जानि नै कि छै ईरादा!
मधेषे लेल जिलै-मरलै राति-दिन
मुदा कऽ देलकै देखु एकरे भिन॥
नै यौ ओ त फायदा लेल अलग भऽ गेलै
आहिरो बा..! इ कि भेलै?
बुझाईय पक्के दालिमे किछ कारी छै
नेता सबके भैया,कुटि चालि जारी छै॥
राजनीतिमे No.1 नेपाल,इतिहासमे लिखा गेलै
आहिरो बा..! इ कि भेलै?
गेल गुजरल सब मधेष भेल
बाँकी सब पहाडी प्रदेष भेल
लगैय सबके सब स्वार्थमे बिका गेलै
आहिरो बा..! इ कि भेलै?
माननिय जी त छटा गेलै॥
हौ दादा हौ दादा
जानि नै कि छै ईरादा!
रचनाकार:विद्यानन्द वेदर्दी

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