कबिता

कतेक सुन्नर सपना देखैत छलौह
आहा नीन स जगा किया देलियै ? ?

कतेक सुन्नर आजाद पंक्षी रही हम
अपन दिलक के पिंजरा में बैसा क
एखन हमरा भगा किया देलियै ? ?

हम नय छी आहा जोगरक
ई हम खूब नीक स बुझैत छी
एक टा बेकसूर के एहन सजा किया देलियै ? ?

आब नफरत भ गेलै हमरा
अपन जिनगी केर नाम स
एक टा सच्चा प्रेमी किया दगा देलियै ? ?

आब त पंख कटि चुकल
नहि उड़ि सकब हम
अपन प्रीतक पिंजरा स किया भगा देलियै ? ?

एना मुस्की चौवनिया द
हमर जान लेबै की ? ?
हमर हँसी चुरा क किया कना देलियै ? ?

कतेक सुन्नर . . . . . . . . . . . .
आहा नीन स किया . . . . . . . . . . . . . .
रोशन मिश्रा

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