कबिता

करब नै विश्वास घात, बुझु न राधा
जिनगी भरि देब साथ, बुझु न राधा॥

प्रेमे-स्नेह पर त सारा जग टिकल छै
छै एकर बड बड बात, बुझु न राधा॥

रोपु हियामे नेहक फूल,उमडबे करत
भ' रहल प्रेमक वर्सात, बुझु न राधा॥

डेगमे डेग मिलाक करब जीवनयात्रा
छोडब नै कहियो हाथ, बुझु न राधा॥

जे कियो करैय दुनियामे सुच्चा प्रेम
खुश राखैय भोलेनाथ, बुझु न राधा॥

© विद्यानन्द वेदर्दी
राजविराज,सप्तरी
हाल:विराटनगर,मोरङ्ग

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