कबिता

आवाज उठाबु यौ,
अधिकार जमाबु यौ,
सब मैथिल मिल क, अपन मिथिला राज्य बनाबु यौ...

आब च'लत नै काज गांधीगिरी स.
सब के बुझ ब पङत दादागिरी स..
बङहल जाईया अत्याचार.
तें त गिरैया सरकार,
से रोकाबु यौ.
घुसखोरी हटाबु यौ,
घुसखोर के मारु यौ,
सब मैथिल मिल क, अपन मिथिला राज्य बनाबु यौ..

सब विकासक नाम पर ठ'कैया.
फेरो दुश्मने स जा क मि'लैया..
कतेक परहल लिखल,
छथि बेकार बैसल,
से हटाबु यौ.
रोजगार लगाबु यौ,
सम्मान बरहाबु यौ,
सब मैथिल मिल क, अपन मिथिला राज्य बनाबु यौ...

जे ओंगरी उठेतै ई समाज पर.
मौतक तोहफा पेतै एहन काज पर..
अपन सभ्यता संस्कार,
पर होईया प्रहार,
से बचाबु यौ.
सूरज मैथिली बाजु यौ,
अजय मैथिली गाबु यौ,
सब मैथिल मिल क, अपन मिथिला राज्य बनाबु यौ...

आवाज उठाबु यौ,
अधिकार जमाबु यौ,
सब मैथिल मिल क, अपन मिथिला राज्य बनाबु यौ..

गीतकार - सूरज भारती

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