मिथला में नवान्न पावैन
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मिथिला में कोनो भी प्रकारक नव वस्तु के पहिने गोसाऊन के अराधना कय भोग लगा ब्राह्मण भोजन करा तखने स्वयं ग्रहण कयल जाई अछि।एखन नवका धान बाध में लागल अछि ओकर काटै के समय भऽ गेल छैक तै हेतु पहिने भगवानक भोग लागत ओहि नव अन्न सौं तें आहि पावैनक नाम नवान्न अछि।
आई मैथिल स्त्री-पुरूष लोकनि भोरे स्नान कय पवित्र भऽ रातिये सौं गोसाऊनिक घर में राखल डाली में सिनूर पिठार लागल हाँसू लय फूल अक्षत ल्ऽ पुरूष अपन निकटक खेत जा फूल अक्षत चढा ईश्वर सौं आदेश लय कनि धानक मूईठ लऽ अंगना आवै छथि जकरा गृहिणी हाथ सौं सुरैर डाली में रखै छथि। दू-चारि अंगनाक मैथिल लक्ष्मी स्त्री कोनो एकटा आंगन जाई नव चूल्हि वा दूटा पवित्र ईटक चूल्हि जकां बना दिया-बातीक बनल ऊक जे घर सब पर ओई दिन देल रहै छैक ताहि सौं आगि पजारि कियो घानी भूजैत छथि कियो धान ढारै छथि त कियो उखैर-समाठ सौं पँचघनियाँ चूड़ा कुटै छथि बड रमणगर लगै छै अंगना।कियो-कियो ढेकीयो में कुटै छथि वा आब त उखैर-ढेकीक अभाव में खल-मूसल में सेहो चूड़ा कुटै छथि। नवका चूड़ा कूटलाक बाद गोसाऊनिक आ तुलसी चौड़ाक पूजा कय आंगन में ठाऊ कऽ पिठार सौं सूर्यदेव आ चन्द्रदेवक मूर्ति बना सिनूर लगवैत छथि।घरक श्रेष्ठ पुरूष गवहा संक्रांति में पाथल चिपड़ी सौं गोसाऊनिक घर में अग्नि जोरैत छथि आ नवका चूड़ा काँच दूध आ गूड़ सानि अग्निदेव के चढा आंगन में बनल सूर्य-चंद्र लग धूप-दीप जरा चूड़ा दूध गूड़क नैवेद्य दऽ फूल अक्षत जल सौं पूजा कय दूधक ढार चढवैत छथि। तदुपरांत ओहिठामक पात समेत नैवेद्य फूल आदि के ओहि जगह पर खाधि खूनि गाड़ि दैत छथि आ सपरिवार प्रणाम कय सब लोकनि गोसाऊनिक घर में जोरल अग्निदेव के चूड़ा दूध गूड़ चढाबै छथि।ओकर बाद पूर्व सौं नोतल ब्राह्मण आ कुमारि कन्या के ससम्मान बजा चूड़ा-दही-गूड़-मूर नोन मिरचाई आ अचारक संग पवित्रता सौं भोजन करा कन्या के तेल सिनूर खोईछ आ द्रव्य दऽ प्रणाम कय विदा करैत छथि आ ब्राह्मण के भोजन दक्षिणा दय प्रणाम कऽ विदा केला बादे सपरिवार नव अन्न ग्रहण करै छथि।
सायंकाल में दिया-बातीक ऊक सौं निकालल संठी के गोसाऊनिक घर में जोरल अगिन में जरा ओही सौं दीप लेसि गोसाऊन के साँझ-बाती देखाओल जाई छनि आ ओहि संठीक आगि सौं चुल्हा पजारल जाई अछि आ लौसग बनैये तें आई गोसाऊनिक घरक आगि जैरते रहैये।साँझखन ब्राह्मण के पुनः निमंत्रण दऽ मूरक साग आ सजमनिक लौसग बनल अगिन के ब्राह्मण समेत सपरिवार चढवैत छथि आ तीमन तरुआ संग ब्राह्मण भोजन कराय सपरिवार भोजन करै छथि।
जय मिथिला!
जय माँ जानकी!
साभार : सखी बहिनपा पेज
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