कबिता

शरदक सन-सन लहरि जे सिहकल
तन-मन अंग-अंग तखनहिं सिहरल
काँपए स'ब पराणी-२
हे यौ जाड़क ऐल जुआनी
हे यौ जाड़क............

मेघ जेना हो घोघ खसउने
सगरे भरल अन्हार कुहेश
सुरुज देव छथि कतौ नुकायल
रौद-धाह् केर नाम ने लेश
सिहकए जखनहिं जोर सँ पुरबा
खाट धरए जा दोग में बुढ़बा
खसबए चट असघानी-२
हे यौ जाड़क.............

के बहरएत ई कन-कन्नी में
ककरा भेलई जान जपाल
शितलहरी के ड'रे घर-घर
स'ब तुईर के हाल बेहाल
कतउ छै लागल घूरक मजरा
कतउ धरउने धह्-धह् धधरा
सब के छै फिरशानी-२
हे यौ जाड़क.................

ककरो घर छै सूट भरल आ
ककरो छै बस एक लंगोट
धनिकक जाड़ मजे में बीतए
गरिबक हाल देखइए लोक
गरिबक देह पर जूड़ए ने अंगा
धनिक श'ख सँ नाचए नंगा
समयक गढ़ल पिहानी-२
हे यौ जाड़क..............

अमित पाठक

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