लोक जतेक छथि दुनियामे
स ,भ मगन छथि अपनामे !
दारू पीबि अबै छथि अपने
गलती तकै छथि कनियामे !
हम अहा त कटलौ जिनगी
भोज ,भजन और करजामे !
सीता बेटी ,जमाए राम छथि
कथीक कमी अछि मिथिलामें !
गौआँ - घरूवा परेशान अछि
व ,र और कनिया महफामे !
बूढी के दिन राति बितै छनि
उलहन आ किछु फकरामे !
सोचु की अंतर अछि बांचल
विश्वविद्यालय आ बनियांमे
अशोक कुमार सहनी
#अपन_मिथिला
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