कबिता


लोक जतेक छथि दुनियामे
स ,भ मगन छथि अपनामे !

दारू पीबि अबै छथि अपने
गलती तकै छथि कनियामे !

हम अहा त कटलौ जिनगी
भोज ,भजन और करजामे !

सीता बेटी ,जमाए राम छथि
कथीक कमी अछि मिथिलामें !

गौआँ - घरूवा परेशान अछि
व ,र और कनिया महफामे !

बूढी के दिन राति बितै छनि
उलहन आ किछु फकरामे !

सोचु की अंतर अछि बांचल
विश्वविद्यालय आ बनियांमे

अशोक कुमार सहनी

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