कबिता

विवाह संस्कार -----

“तदिदं विपर्या सेन सम्बन्धनयनं विवाहम्|”
विवाह स्त्री पुरुषक सम्बन्ध केँ सामाजिक मान्यता प्रदान करबाक तथा गृहस्थाश्रम मे प्रवेश हेतु स्त्री पुरुषक साहचर्य तथा सह धर्माचरणक भूमिका प्रारम्भ करैत अछि | विवाहक लेल अनेक शव्दक प्रयोग भेटैत अछि | उद्वाह अर्थात कन्या केँ उर्ध्व [ऊपर] लऽ जाएब विवाह ,अर्थात कन्या केँ विशेष प्रयोजन सँ लयजाएब ,परिणय ,कन्याक संग जीवन परिक्रमा करब ,तथा पाणिग्रहण अर्थात हाथ पकड़ब |एहि संस्कार द्वारा दू कुल में सम्बन्ध होइत अछि | विवाह संस्कारक पश्चात् स्त्री पुरुष मिलि पूर्णता प्राप्त करैत अछि | विवाह संस्कार एकटा आहुतिक तैयारी अछि जाहि मे पति पत्नी दूनूक सहभागिता होइत अछि आ ओहि मे परिवार ,गाम, जनपद, देश आ विश्वक कल्याण भावना समाहित अछि |विवाह एकटा स्थायी सम्बन्ध थिक |विवाह मिथिले नहि प्रत्युत भारतीय संस्कृति मे अत्यधिक महत्व रखैत अछि | एकर किछु नियम आ विधान अछि जाहि सँ स्त्री पुरुषक स्वेच्छाचारिता पर नियंत्रण राखल जाइत अछि | पाणिग्रहण संस्कार देवता मानव आ अग्निक साक्षित्व मे करबाक विधान अछि | मिथिला मे ई संस्कार दाम्पत्य सम्बन्धक जन्म जन्मांतर युग युगांतरक सम्बन्ध मानल गेल अछि | आइ लोक विवाह केँ मात्र एकटा उत्सव मानैत छथि जे संस्कारक अर्थ नहि बुझैत छथि |सस्कारक अर्थ अछि दोषक नाश तथा गुणक प्रवेश वा जन्म |एहि सँ आत्माक उन्नत्ति होइत अछि |एहि सँ पवित्र प्रेम ,अर्थ धर्म काम, मोक्ष पुरुषार्थक प्राप्ति आ मर्यादाक पोषण होइत अछि |मिथिला मे एहि संस्कारक अंतर्गत वाग्दान ,मंडप निर्माण ,देव पूजा .आभ्युदयिक श्राद्ध ,मात्रिका पूजा ,आममहुविवाह, वरपूजन ,गोत्रोच्चार ,कन्यादान ओठंगर विधि जूटिका बंधन , ,पाणिग्रहण ,अग्नि प्रदक्षिणा ,लाजाहोम ,सप्तपदी ,अश्मारोहण ,ह्रदयस्पर्श ,ध्रुव दर्शन ,सिंदूरदान ,चतुर्थी कर्म कएल जाइत अछि मिथिला मे ब्राह्म विवाहक प्रथा अछि | कन्या केँ यथा शक्ति वस्त्रालंकार सँ विभूषित कए विद्या ,गुण संपन्न शीलवान वर केँ घर बजाए वैदिक विधि सँ कन्यादान कएल जाइत अछि | एतय विवाहक अंतिम विधि दनऽही कए संपन्न कएल जाइत अछि

विवाहाग्नि परिग्रह ---
विवाह संस्कार मे लाजा होम आदि जे अग्नि मे संपन्न कएल जाइत अछि ,ओहि अग्निक आरहरण तथा परिसमूहन आदि क्रिया एहि संस्कारक माध्यमे संपन्न होइत अछि | एहि अग्निक प्रदक्षिणा कए स्वस्तिकृत होम तथा पूर्णाहुति करबाक विधान अछि |विवाहक उपरान्त जखन वर वधु अपन घर जाए लगैत छथि तखन ओहि स्थापित अग्नि केँ अपन घर आनि कोनो पवित्र स्थान में प्रतिष्ठित कए अपन कुल परम्परागत नुसार सायं प्रात हवन करबाक विधान अछि | आब ई संस्कार मिथिलो मे समाप्त प्राय अछि |
त्रेताग्निसंग्रह संस्कार -------
विवाह मे संस्कारक अंत मे आनल गेल “ आवसथ्य “अग्नि प्रतिष्ठित कएल जाइत अछि आ ओही सँ स्मार्त कर्म आदिक अनुष्ठान कएलजाइत अछि | एहि स्थापित अग्निक अतिरिक्त तीन अग्नि दक्षिणाग्नि ,गार्हपत्य तथा आह्वानीय अग्निक स्थापना तथा ओकर रक्षादिक् विधान अछि |इएह तीनू अग्नि त्रेताग्नि कहबैछ जाहि में श्रौत कर्म संपादित होइत अछि |

सौजन्य : मिथिला जगत

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