कबिता

देखल सपना अखन धरि नै साकार भेलै
कुमारे रहल जिनगी यौ झंठ बेकार भेलै

सपने कें संसारमें रमाएत रहलौ नित
खुजिते नीन शुभ भोर हमर अन्हार भेलै

जाडसऽ सिहरै देह थरथर कापैत छल
एकल जीवन जखन बोझक पहाड भेलै

जरल जवानी होइत रहल जियान मीता
केकरो संग नै आइयो धरि नैना चार भेलै

विधाता की लिखलकै 'अशरफ' क कपार में ?
फूल आ चमेली छोड़ि तकिये संगे प्यार भेलै

सरल वार्णिक बहर
वर्ण :१७
अशरफ राईन
सिनुरजोडा, धनुषा
हॉल: क़तार

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