कबिता

जाड़ बड़ जाड़, गोंसाई बड़ पापी ।
धिपले खिच्चैर, खूआ गय काकी ।
ऊँचगर घूर पर, गदौस एक ढाकी ।
नहा सोना के भोरे, धधरा तापी ।

खीच्चैर के छय, चारू भजाड़ ।
दही पापड़ संग घी आ अंचार ।
पाबैन निक, ई जाने संसार ।
ताक लगेने छथि सब खौकार ।

घाट तरक ओ चिल्लौर कहनाई ।
धियापूता के नहाई लै ठकनाई ।
घूरे लग खेनाई तिलबा आ लाई ।
केहन अपूर्व ओ दीन बूझाई ?

नव विवाहितक लेल जराउर ।
ओढना बिछौना भार दौर सब ।
तिलकोरक संग तरल खम्हौर ।
यैह ई पावनि कहब की और ।

मगन झा जी (दलान )

सम्पूर्ण मिथिला आओर मैथिल के तिला संक्रांतिक हार्दिक शूभकामना ।

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