कबिता

"रोकु दहेज के"

बहुतो बेटि जैर गेलै ,
बहुतो बेटि गाछ तर लटैक गेलै,
बहुतो घर लुटागेलै,
बहुतो भाइ मैर गेलै,
मुदा ,
जुटाब नै सकलकै रुपैया,
दहेजके ।

वर वर ज्ञानी भेलै,
वर वर अगुवा भेलै,
देशके शासक बदल्लै,
आदमिमे चेतना जगलै,
मुदा,
लगाम लगाब नै सकलकै,
दहेज के ।।

बहुतो जोरि घुटना टेक,
दहेजके आगु मजबुर भजाइय।
बहुतो बाप एकरा अगाडि,
पाग के लाज गिरबैय ।।
मुदा,
तैयो रोईक नै सकलकै,
यै रितके !

जै बेटि छैत तै हम अछी,
सब किय नै सोचलकै ।
जै बेटि छैत तै संसार अछी,
इ रित किय न बुझलकै ।।
अन्त करु खरिद बिकरी,
जिन्ददी बेटि के ।
आ तब समभाब अछी,
रिस्ता रोटिके ।।

सोगारथ यादव

#अपन_मिथिला

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