कबिता

आईब रहल ऐछ फागूनक माँस
शुरू हुवे लागल खोज पुछारी !

कीन्का घरमे ऐछ विवाह योग्य कन्या बर
घुम लागल ऐछ गाम घरमें बैलक वेपारी !

बेटी बला खोईज रहलय निक घर द्वार ,
त बेटा बला ताकैय कोन से आयेत हजारी !

कैरी रहलय अपन बेटा बेटी के मोलजोल
जेना बेचैय लोग हाटक साग तरकारी !

येकरा सौख कहीं या फ़िर लाचारी ,
बनल जाईय क्यानसर जका बीमारी !

हमहू देस विदेश सब जग घुमलौँ
नई देख्लौँ कतौके लोग येतेक बेबीचारी !

लोगो हसैये आई मैथिल पर,
दस गोटे के बिचमे दैये धुतकारी !

शर्म लगईये आई अपना उपर
कोनाक कहीं अपन लाचारी !

केतनो कहैछी नई पतीयाइये
मैथीलो होइत ऐछ संस्कारी !

कहैये दहेज खातिर पूतहू जराबैछे ,
आखिर ओहो त कीन्ह्करो बेटी छि !

अहा सब जिन्दा दानव छी ,
अहा सबहक इहे खेती छि !

बिनती करैछी हे यौ मैथिल ,
आबो त चलू चोईच बिचारी !

दहेज लेनाई त ग़लत छि ,
अहूँ ई बातके लिय स्वीकारी !

राम शंकर दास
सिरहा नेपाल

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