कबिता

पुश मास पानी ठार लगैय
अस्नान करैतखुन बड्ड जार लगैय
भरिदिन कुभेस फसरल छै
गोहाली घरमें घूर धधरल छै
बुढवा दादा अलुवाह पकाय
बौवा बुच्चि मागि-मागि खाय
लोटामे पानी, थारीमे भात काढल छै
बुढवा दादा गप्पमें लागल छै
थारीकें भात देखूं ठैर गेलैय
घूर महक अलुवाह सेहो जैर गेलैय
देहमे मैलक' चिप्परी सट्ल छै
टांगक' तरबा सेहो फाटल छै
पानी छुवैत बड्ड कोढि लगैय
खाएत खुन फुररसिन उठैय

-प्रयास प्रेमी मैथिल

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