कबिता

हम छी राधा पिया,
अहां हम्मर कन्हैया बनु ने
प्रेम के धुन गढ़ल,
अहां बंशी बजैया बनु ने
हम छी राधा पिया...........

जँ ई प्रीतक जिनगी भँवर त' रहउ
एक अहीं के भरोसे उतरि जएब हम
नाम अ'हींक जोड़ब अपन नाम सँ
आन ककरो ने किन्नहुँ कदपि हएब हम
धार केहनो बहए,
खेबि नैया खेवैया बनु ने
हम छी राधा पिया............

प्रीत अपनहुँ अमर एक दिन भ' जेतै,
जेना राधा आ कान्हाक कहियो भेलै
मास खढ़मास जहिना बिता क' देखु,
ल' मधुर रस वसंतक महिना एलै
सब सहब दुर्दशा,
हे सरस सम समैया बनु ने
हम छी राधा पिया...........
प्रेम के धुन गढ़ल............
अमित पाठक ©

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