परदेश में एना कs जिनगी हमर बितैत अछि ,
मोनक' आश बनि कs सदखिन टुटैत आछि ।
माघ कs मासमें भलै सुरुजो मलिन,
ऐ पर खुश भऽ देखू हवा सिहकैत अछि।
हम कोना कऽ बिसरब मधुर मिलनक घडी,
रहि-रहि प्रिया याद आवै, मोन तडपैत अछि।
'अशोक' चिंतन मनन कियो नहि करैय अछि,
परदेश में एना कs जिनगी हमर बितैत अछि।
©अशोक कुमार सहनी
लहान ४ रघुनाथपुर
हाल ( दोहा क़तार )
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