कबिता

परदेश में एना कs जिनगी हमर बितैत अछि ,
मोनक' आश बनि कs सदखिन टुटैत आछि ।

माघ कs मासमें भलै सुरुजो मलिन,
ऐ पर खुश भऽ देखू हवा सिहकैत अछि।

हम कोना कऽ बिसरब मधुर मिलनक घडी,
रहि-रहि प्रिया याद आवै, मोन तडपैत अछि।

'अशोक' चिंतन मनन कियो नहि करैय अछि,
परदेश में एना कs जिनगी हमर बितैत अछि।

©अशोक कुमार सहनी
लहान ४ रघुनाथपुर
हाल ( दोहा क़तार )

0 टिप्पणियाँ Blogger 0 Facebook

 
अपन मिथिला © 2016.All Rights Reserved.

Founder: Ashok Kumar Sahani

Top