कबिता

वंश वंश अहाँ सब करे छी
वंशक लती काइट रहल छी
एकटा फरक आशा में अहाँ सब
पूरा वारी उजाइर रहल छी।

फुल नही रहत वारी में तय
फर कतय से पायब यो
अंश कैट के अहाँ अपन
केना के वंश बढायब यो।

उम्र जखन ढलत साझं में
बेटा ठार नए होयत लग में
तहन याद करब ओहि अंश के
जकरा मारलों अपना हाथ से।

नई मोचरू ओहि नाजुक कली के
आबे दियो ओकरा अहि दुनियाँ में
बनिके फुल ओकरा खिले दियो
जीबन ओकरा पावे दियो।

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